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पंचम अध्याय ।
दीक्षार्थी व गुरुके गुण तथा दीक्षा विधिका वर्णन चतुर्थ अध्यायमें करके यतिधर्मका वर्णन इस पांचवे अध्यायमें करते है। उसका पहला सूत्र यह है-- बाहुभ्यां दुस्तरो यद्वत्, क्रूरनको महोदधिः । यतित्वं दुष्करं तद्वत् , इत्याहुस्तत्त्ववेदिनः ॥२५॥ __ मूलार्थ- तत्ववेत्ता कहते हैं कि जिस प्रकार क्रूर मगर व मत्स्यवाले महोदधिको अपनी दोनों भुजाओंसे तैरना कठिन है उसी प्रकार यह यतिधर्म दुष्कर हे ॥२५॥
विवेचन- बाहुभ्यां- भुजाओमे, दुस्तर:- तैरना अशक्य है, क्रूरनक:- भीषण जल जन्तुओंसे आक्रांत- भरा हुआ, जैसेमगर मच्छ आदि जीवोंसे, महोदधिर- महासमुद्र, दुष्करंमुश्किलसे आचरणयोग्य कष्टसे किया जानेवाला, तत्त्ववेदिन:दीक्षाके परमार्थको जाननेवाले । ____ तत्त्वज्ञ जनोंका मत है कि जिस प्रकार क्रूर व भीषण जलजंतुओंसे भरा हुआ महासमुद्र हाथोंसे तैरना महा मुश्किल है उतना