________________
यति सामान्य देशना विधि : २७७ योग्यता हो तो कई गुणोंको प्राप्ति संभव है पर केवल योग्यतासे सर्व कार्य सिद्ध नहीं होते। जो ऐसा न माने और योग्यताकों ही मुख्य गुण मान लें तो योग्यता तो सब मनुष्योंमें अपनी स्थितिके अनुसार होती ही है। इससे सत्र उत्कृष्ट गुणवाले बन जायं और जगत्में सामान्य गुणवाला तो कोई न रहे। अत. यह सिद्ध होता हैं कि विशिष्ट योग्यता उत्कृष्ट गुणोंकी साधक है केवल सामान्य योग्यता नहीं। . सोऽप्येवमेव भवतीति वसुरिति ॥१६॥ (२४२)
मूलार्थ-गुणोत्कर्ष-भी इसी प्रकार होता है यह वसुकामत है ॥१६॥
विवेचन-एवमेव-पूर्व गुण जो हैं वे उत्तर गुणोंकी शरूआत है. अर्थात् .बडे गुणोंकी प्राप्तिका आरंभ पहले प्राप्त होनेवाले छोटें: छोटे पूर्व-गुणोंसे ही होता है।
गुणसे गुणकी वृद्धि होती है। । सामान्य गुणमेंसे विशेष गुण उत्पन्न होता है। पर केवल योग्यतासे उच्च गुण प्राप्त नहीं होते। बीज बिना कभी भी पेड पैदा नहीं होता अतः कोई भी कार्य निर्बीज होना असंभव है। अतः गुण होने पर उसकी वृद्धि होती है ऐसा वसु नामक राजा का अभिप्राय है जो व्यासके मतको अनुसार है।
अयुक्तं कार्षापणधनस्य तदन्यविढपनेऽपि कोटिव्यवहारारोपणमिति क्षीरकदम्बक
इति ॥१७॥ (२४३)