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गृहस्थ विशेप देशना विधि : २०१ और आसन-शय्या; इन सबका अतिक्रमण-ये पांच अतिचार है ॥२७॥
विवेचन-क्षेत्र-धान्यकी उत्पत्ति भूमि, यह तीन प्रकारकी होती है-१ सेतुक्षेत्र-जिसमें कुंए पर रहट हो, जिससे पानी नीकाल कर सींचा जा सके ।२ केतुक्षेत्र-जिसमें आकाशसे गिग्नेवाले पानीसे खेती होती हो। ३ उभगक्षेत्र-सेतुकेतु-जिसमें दोनों रोतिसे अन्न उत्पन्न की जाती है । वास्तु-घर, ग्राम व नगर, उसने घरके तीन प्रकार हैं-१ खात-भूमिके नीचे गुप्त गृह २ उच्छ्रित-भूमिके उपरका घर | ३ खातोच्छ्रित-जिम घरमें दोनों हों।
इन सब क्षेत्र व वास्तुका जो प्रमाण किया हो, उस संख्यासे अधिक रखनेसे अतिक्रम-अतिचार होता है । अथवा तो यदि एक ही क्षेत्र या वास्तु रखनेका अभिग्रह किया हो और अधिककी अमिलापा हो जाने पर व्रतभंग होनेके से उसके समीपस्थ क्षेत्र या गृह लेकर उसके वीचकी आड या दीवार आदिको हटाकर उसे पुरानेके साथ मिला देनेसे व्रतकी सापेक्षतासे विरतिको कुछ हानि होती है और उससे भंगाभंग होकर अतिचार लगता है !
हिरण्य-सुवर्ण-रजत-हेम-इसका भी जो परिमाण किया जाय उससे अधिक यदि कोई दूसरा उसे दे या अपने पास न रखते हुए दूसरेको दे तो वह अतिक्रम-अतिचार होता है। उदाहरणार्थ-किसीने चातुर्मासमें स्वर्ण व चादीका परिमाण किया, उससे राजा या सेठ प्रसन्न होकर उससे अधिक स्वर्ण या चांदी उसे देता है । वह व्रतभंग होनेके डरसे उस अवधिके लिये दूसरेको दे देता है तथा अवधि