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चतुर्थ अध्याय। सांप्रतं चतुर्थ आरभ्यते, तस्य चेदमादिसूत्रम्एवंविधिसमायुक्त सेवमानो गृहाश्रमम् । चारित्रमोहनीयेन, मुच्यते पापकर्मणा ॥१९॥
मूलार्थ अव चौथे अध्यायको प्रारंभ करते हैं -यह उसका प्रथम सूत्र है
इस प्रकार विधिसे गृहस्थधर्मको पालनेवाला पुरुष चारित्र मोहनीय नामक पापकर्ममेंसे मुक्त हो जाता है ।।१९।। -, विवेचन-एवविधिना- पूर्वोक्त सामान्य व विशेष गृहस्थधर्मके लक्षणों सहित, सामायुक्तः-युक्त या सपन्न, सेवमान:-सेवन करते हुए, गृहाश्रम-गृहस्थीमें रहते हुए, मुच्यते-मुक्त हो जाता है; पापकर्मणा-पापकृत्यसे।
पूर्वोक्त विधियोंसे क्रमशः सामान्य धर्मके पश्चात् विशेष धर्मका पालन करनेसे चारिन मोहनीयकर्म तूटते हैं। गृहस्थधर्म जिसमें अणुव्रतादिक, पाले जाते, हैं चारित्रके लिये तैयारीरूप है । अणुव्रतोंसे महानतोका अधिकारी बनता है। आमा चारित्र मोहनीयसे कैसे मुक्त होती है सो कहते हैं