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२५८ : धर्मविन्दु मोक्ष प्राप्तिके अनुकूल उत्तम भावनाएं मुख्य हैं। सारा धर्म इन चार भावनाओंके ऊपर आधारित है। उच्च भावना रखना ही प्रधान बात है। यह चारित्रका कारण जिस प्रकार है सो कहते हैंपदं पदेन मेधावी, यथा रोहति पर्वतम् । सम्यक् तथैव नियमात , धीरश्चारित्रपर्वतम् ॥१७॥
मूलार्थ- जैसे बुद्धिमान् क्रमगः कदम कदमसे पर्वत पर चढ जाता है वैसे ही धीर पुरुष चारित्र पर्वत पर क्रमशः अवश्य चढ जाता है ॥ १७॥
विवेचन- पदं पदेन- क्रमशः कदम कदमसे, मेधावीबुद्धिमान् , आरोहति- चढ जाता है। पर्वतम्- जैसे रैवताचल आदि पर । सम्यक्-भली प्रकारसे, हाथ पैर तोडे विना, तथैव-उसी प्रकार, नियमात-अवश्य, धीर:- निष्कलंकित श्रावक धर्मको पालन करनेवाला, चारित्रपर्वतम्- सर्व विरति नामक महान शिखर पर ।
जैसे किसी भी पर्वत पर तुरत ही नहीं चढा जा सकता पर एक एक कदम चल कर उसकी चोटी तक पहुंच सकते हैं वैसे ही जो व्यक्ति श्रावक धर्मको भली भांति पालता है वह अवश्य ही क्रमशः चारित्रके महान पर्वत शिखर पर चढ जाता है।
यह कैसे हो सकता है। कहते हैंस्तोकान् गुणान् समाराध्य, बहनामपि जायते । यस्मादाराधनायोग्या, तस्मादादाक्यं मतः ॥१८॥
मूलार्थ-मनुष्य छोटे या थोडे गुणों की आराधनासे अधिक गुणोंकी आराधनाके योग्य बनता है अतः पहले गृहस्थके