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यति सामान्य देशना विधि : २६५ जैन्ममें मानते या विश्वास रखते हैं। ऐसे लोग या अधिकतर ऐसे लोग जहाँ रहें वही आर्यदेश माननेलायक है । मेरे विचारसे ऐसी संस्कृति भारतवर्ष में ही है । भारतसे भिन्न अनार्य कहे जा सकते हैं।
विशिष्टजातिकुलान्विता - शुद्ध विवाह योग्य चार वर्णके अन्तर्गत माता - पितावाला तथा कुलीन जातिवाला, क्षीणप्रायकर्ममल:- ज्ञानावरणीय, मोहनीय आदि कर्ममल जिसका प्रायः क्षीण हो गया है और उससे उत्पन्न विमलबुद्धिवाला अर्थात् कर्म क्षीण होनेसे निर्मल बुद्धि उत्पन्न हो गई है वह, प्रतिक्षणं मरणं - अपने कालके अनुसार मृत्यु होने की अपेक्षा क्षण क्षण पर मरण । कहा है कि -
"यामेव रात्रि प्रथमामुपैति, गर्भे वसत्यै नरवीर ] लोकः । ततः प्रभृत्य स्वलितप्रयाणः स प्रत्यहं मृत्युसमीपमेति ॥१४३॥
- व्यास युधिष्ठिरसे कहते हैं - हे नरवीर जिस रात्रिमें जीव गर्भमें उत्पन्न होता है, उसी समयसे निरंतर प्रयाण करनेवाला जीव जिसकी आयुष्य प्रतिक्षण क्षीण होता है वह प्रतिक्षण व प्रतिदिन मृत्युके समीप आता है
प्रागपि - दीक्षा लेनेसे पूर्व स्थिर - आरंभ किये हुए कार्यको बीच में न छोडनेवाला, समुपसंपन्नः - सम्यकूं प्रकारसे सर्वथा आत्मसमर्पणद्वारा पास में आया हुआ - साधुके समीप दीक्षा लेने को उपस्थित |
जैनधर्म दो प्रकारसे पाला जाता है - एक श्रावकद्वारा, दूसरा यति - साधुद्वारा | श्रावकका धर्म ऊपर कहा जा चुका है। साधुका आगे कहते हैं । साधु वननेके लिये दीक्षा लेना होता है । दोशाके योग्य होनेके लिये जिन गुणोंकी आवश्यकता है वे इसमें कहे गये