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यति सामान्य देशना विधि : २६३ मूलार्थ-इस प्रकार गृहस्थका विशेष धर्म कहा है। अब यतिधर्म करनेका अवसर है अतः यतिका व यतिधर्मका वर्णन करते हैं ॥१॥
यतिका स्वरूप कहते हैंअर्हः अहंसमीपे विधिप्रजितो यतिरिति ।।२।। (२२८)
मूलार्थ-योग्य अधिकारी योग्य व्यक्तिसे विधिवत् दीक्षा ले वह यति है ॥२॥
विवेचन-अर्ह -दीक्षा योग्य अधिकारी, अर्हस्य- दीक्षा देने योग्य गुरुके, समीपे-पास, विधिना-विधिवत् प्रव्रजित:-दीक्षा ग्रहण किया हुआ, यति-मुनि। .
दीक्षाके योग्य हो जाने पर जो दीक्षा देनेके योग्य गुरुके पास विधिवत् दीक्षा ग्रहण करे वह मुनि कहलाता है । ___ दीक्षाके योग्य व्यक्तिकी योग्यता शास्त्रकार बताते हैंअथ प्रव्रज्याहः आर्यदेशोत्पन्नः, विशिष्टजातिकुलान्विता, क्षीणप्रायकर्ममलः, तत एव विमलवुद्धिः, दुर्लभं मानुष्यं, जन्म मरणनिमित्तं, संपदश्चपलाः, विषया दुःखहेतवः, संयोगेवियोगः, प्रतिक्षणं दारुणो विपाकः इत्यवगतसंसारनैर्गुण्यः, तत एव तद्विरक्ता, प्रतनुकषायः, अल्पहास्यादिः, कृतज्ञा, विनीतः, प्रागपि राजा