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२०८:धर्मविन्दु छण- पशुओंके लिंगको काटना, दवदाणं- जंगल जलाना, सरदहतलायसोसं- सरोवर, तालाब आदि सुखाना, असईपोसं- असती. पोषण- इस प्रकारके पंद्रह कर्म व व्यापार श्रावकके लिये वर्जित हैं। ___इसका भावार्थ वृद्ध संप्रदायकी परंपरासे जानना चाहिये जो इस प्रकार है
१. अंगार कर्म-अंगारे या कोयले करके बेचना, उसमें छ काय जीवोंका वध होता है अतः वह वर्जित है।
२. वन कर्म-वन या जंगल खरीद करके उसे काट काट कर, बेच कर उससे आजीविका चलाते हैं। उसके पेड- पन्ने आदि लकडीका बेचना निषिद्ध है। इससे सचित्तको मारनेका तथा उसके जलने, खानेसे जो पाप होता है उसका भागी बनना पडता है।
३. शकट कर्म- जो गाडी आदि वाहन रखे और उससे आजीविका करे- उसमें गाय, बैल आदिका वध, बन्ध आदि दोष है। उसी प्रकार इस समयमें मोटर आदि वाहनका है। उसमे भी टकरानेसे मनुष्य तथा अन्य प्राणीकी मृत्यु होती है तथा उसमें पैट्रोल आदि जलने तथा उससे चलनेसे कई जीवोका वध आदि होता है।
४. भाडी कर्म-किराया लेकर गाडी आदिसे दूसरोंका माल लाना, ले जाना, अथवा दूसरेको गाडी, बैल आदि किराया पर देनायह वर्जित है।
५. स्फोटी कर्म-तोडना, फोडना व खोदना तथा हल आदिसे