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२३० : धर्मविन्दु ऋद्धिरहित । ऋद्धिवान अर्थात् राजा आदि तथा धनी कुटुंबवाला, अपने सारे परिवार व समुदायसहित मदिरमें जावे जिससे शासनकी प्रभावना होती है । दूसरा-भी ऋद्धिरहित श्रावक भी स्वकुटुंब सहित मंदिरमे जावे । समुदायमें किये हुए कर्म भवांतरमे भी समुदायमें ही भोगे जाते हैं।
तथा-विधिनाऽनुप्रवेश इति ॥४७॥ (१८०)
मूलार्थ-और विधिसहित मंदिरमें प्रवेश करे । 'विवेचन-चत्यगृह अर्थात मंदिरमें विधिसहित प्रवेश करना चाहिये । प्रवेश करनेकी विधि इस प्रकार है___"सचित्ताणं दवाणं विउस्सरयणाए, अचित्ताणं दवाणं विउस्सरणाए, एगसाडिएणं उत्तरासंगेण, चक्खुफासे अंजलि. पग्गहेणं मणसो एगत्तीकरणेणं" ॥
-सचित द्रव्यका त्याग करके, अचित्त द्रव्यका त्याग किये बिना एकगाटिकेन-ओढनेके वस्त्रका उत्तरासन बनाकर, जिन विव देखते ही अंजलि जोडकर तथा मनको एकाग्र करके मंदिर में प्रवेश करें।' तत्र च उचितोपचारकरणमिति ॥४८॥ (१८१)
मृलार्थ-वहां उचित उपचार (सेवा-भक्ति) करना चाहिये। विवेचन-उचित-अर्हत् बिंबके योग्य, उपचार-पुष्प, धूप आदिसे पूजा व सेवाभक्ति ।
१ यदि राजा मदिर में जावे तो राजचिह्नोंका त्याग करे । राजचिह्न ये हैं-१ वाहन (जूते आदि), २ मुकुट, ३ तलवार, ४ छत्र व ५ चामर ।