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गृहस्थ विशेष देशना विधि : २३५: गुणोंकी स्तुति करना तथा उनके योग्य अन्नपान वस्त्र आदिले सेवा व
सहायता करना ।
जिस सर्व विरतिको स्वयं ग्रहण नहीं कर सकते उसे अंगीकार करनेवाले पुरुषसिंहके गुणोंकी प्रतिक्षण प्रशंसा करना चाहिये। उसका गुणगान तथा योग्य वस्तुओंसे सेवा आदर व सहायता करना चाहिये ।
तथा - निपुणभावचिन्तनम् ||५८|| (१९१ ) मूलार्थ - सूक्ष्म बुद्धिसे ज्ञात होनेवाले भावोंका चिंतन करना चाहिये || ५८ ॥
विवेचन- निपुणानाम् - अति निपुण बुद्धिसे सूक्ष्मभाव समझने योग्य, भावानाम् - उत्पाद, व्यय और प्रौत्र्यके स्वभाववाले सत् पदार्थोंका जैसे बंध, मोक्ष आदिका विवेचन या चार निक्षेपोंसे वस्तुविवंचन या सप्तभंगीके स्वरूपका विचार करना ।
धर्ममें द्रव्य, गुण पर्यायको सूक्ष्म स्वरूपका विचार करना, सत् वस्तुकी लक्षणसे परीक्षा व विवेचन, चार निक्षेपा व सप्तभंगी आदि सूक्ष्म भावोंका चिंतन व विचार करना चाहिये। इस तत्वचिंतनसे बुद्धि बढती है तथा हृदय पर सत्यकी असर बढती है । बंघ, मोक्ष आदिका विवेचन करे जिससे तत्त्व जाननेसे मोक्षकी तरफ जोव प्रवृत्तिमय होवे | कहा है कि-
" अनादि निधने द्रव्ये, स्वपर्यांयाः प्रतिक्षणम् । - उन्मज्जन्ति निमज्जन्ति, जलकल्लोलवजले ” ॥१२१॥ —— जैसे जलमें तरंगें बारंबार उत्पन्न होती हैं तथा समाप्त होती