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२४८ : धर्मविन्दु
ऐसी शुभ भावनाएं और सर्वका शुभ चिंतन चित्तसे सहर्ष करे। तथा-शिष्टचरितश्रवणमिति १८०॥ (२१३) . मूलार्थ-और शिष्ट पुरुषोंके चरित्रका श्रवण करे ॥८॥
विवेचन-शिष्टचरितानां प्रथम अध्यायमें 'शिष्टचरितप्रशंसनमिति' (१-१४) नामक सूत्रमें कहे गये लक्षणोंवाले, श्रवणंनिरंतर सुनना।
शिष्ट पुरुषोंके, जिनके गुण प्रथम अध्यायमें बताये हैं, चरित्रको निरंतर सुनना चाहिये। उनके सुनने या जीवनचरित्रोके पढनेसे उनके गुणोंके प्रति आकर्षण पैदा हो कर उसे प्राप्तिकी इच्छा होती है और उससे प्राप्त गुणकी हानि संभव नहीं है। कई उपन्यास व निरर्थक पुस्तकें पढनेमे हमारा समय वृथा जाता है, जीवनचरित्र पढनेसे उनमेंसे हमें कुछ न कुछ बोध प्राप्त हो सकता है। उन अलौकिक गुणोमसे कोई न कोई गुणकी प्राप्ति अवश्य हो सकती है। उनको पढनेसे आत्मपरीक्षण भी उत्पन्न होता है।
तथा-सान्ध्यावधिपालनेति १८१॥ (२१४) मूलार्थ-और संध्याकालकी विधिका पालन करे ।।८१॥
विवेचन-सान्ध्यविधि- संध्याकालमें करनेकी विधि अर्थात् दिनके अष्टमांश भागके शेष रहने पर (करीब ४ घडी या १॥ घंटा) भोजनादिसे निवृत्त होना तथा अन्य विधि-आवश्यक क्रियाएं करना।
संध्याकाल अर्थात् शामको करनेके अनुष्ठानमें तत्पर रहे। दिनके वे भागमें भोजन करके तथा अन्य व्यवहारको बंध करके अन्य आवश्यक क्रियाएं आदि करनेमें उद्यमवत हो। इस विषयमें