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गृहस्थ विशेष देशना विधि : २०७
अथवा सुरा और संघात अर्थात् कालका अतिक्रम होनेके बाद -
निश्चित अवधिके पश्चात्का आचार- खानेवालेको सावध त्याग होनेसे अतिचार होता है ।"
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दुष्पकाहार - आधी पकी हुइ और आधी कधी ऐसी वस्तु सावध आहार है और अविचारी अवस्थामें खानेसे अतिचार लगता है- ये पांचों अतिचार भोजनके बारेमें कहे, अन्यत्र यह भोगोपभोग परिमाण भोजनकी अपेक्षा कहा जाता है अतः उसके में अतिचार कहे और भी सर्व व्रतोंके पांच पांच होनेसे इसके भी पांच कहे। 'आवश्यक नियुक्ति आदिमें इन्हे कर्मसे भी कहा हैं ।
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आजीविका के लिये आरम्भ कर्म होता है
उससे जो तीव्र कर्म होते हैं और निर्दय जनोंके योग्य कठोर कर्मके आरंभ करनेवाले चौकीदार या जेलर आदिके कर्मोंका त्याग करना ही अच्छा है । इन
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स्वर कर्मके अलावा अंगार कर्मके जो १५ अतिचार हैं वे कहते हैं
"इंगाली वणसाडी, भाडी फोडी सुवजय कम्मं । 'वाणिज्जं चैव य दंत-लक्स रस केस विस- बिसयं ॥१०९ ॥ "एवं खु जंत- पिल्लणकस्मं निलंछणं च दव्वदाणं च । सर- दह-तलायसोस, असईपोसं च वज्रिजा" ॥११०॥
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- दंगाली - अंगारकर्म, वण- वनकर्म, साडी- शकटकर्म, भाडी- किराये पर वाहन देना, फोडी- स्फोटी कर्म- फोडना; इन कमका त्याग करना, दंत- हाथीदांत, लक्ख- लाख, रस- मदिरा आदि रस, केस - चाल अथवा वालवाले मनुष्य व पशु, विस- विषेको
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ये पाँचों व्यापार वर्जनीय हैं। जंतपीलण चक्की, घाणी, निलं
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