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गृहस्थ विशेष देशना विधि : २०९ जमीनको उखेडना- इसका त्याग करना, क्योंकि उसमें कई जीवोकी विराधना होती है ।
६. दंतवाणिज्य- हाथी के दांत के व्यापारका निषेध है। इसका व्यापार करनेवाले भील आदि लोगोको पहलेसे पैसे देकर 'थोडे समयमें मुझे दांतला दो' आदि कहते हैं। वे दांतके लिये हाथी आदिका हनन करते हैं अथवा उसके लाये हुए मालको वेचते हैं । इसमें पंचेन्द्रिय जीवका हनन होता है और पापकर्मके भागी बनते हैं ।
आजकल इस प्रकारकी अन्य कई वस्तुए जैसे दवाईया आदि तथा अगम्य वस्तुएं जिसमें जीव हिंमा होती हैं, बेची जाती है। प्रत्येक अंग्रेजी दवा मदिरा और अन्य प्राणीकी हिंसाका समावेश होता है उसे बेचने व खाने से उस जीवहिंसा के भागी होते हैं तथा उस जीव हिंसाको उत्तेजना देनेवाले बनते हैं । इन सब वस्तुओं का व्यापार भी श्रावक न करे ।
७. लक्षवाणिज्य - उसमे भी यह दोष है- उसमें जीवकी उत्पत्ति होती है ।
८. रसवाणिज्य- मदिरा आदि रसोका व्यापार- मडीसे मदिरा - नीकाली जाती है । उसी प्रकार मधुका निपेत्र है । मदिरामें अनेक दोष है - उपरांत पीनेवाला मारना, क्रोध, हिंसा आदि भी करता है। अत. ऐसा व्यापार न करे |
९. केशवाणिज्य- दास, दासी तथा पशु आदि बालवाले प्राणियोंका व्यापार- दास दासीको एकसे खरीद कर दूसरेको वेचना --