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गृहस्थ विशेष देशना विधि : १२९ करना व न कराना' ऐसा कह कर जो व्रत लिया है तब परविवाह करानेसे अर्थतः मैथुन कराना ऐसा हो जानेसे व्रतका भंग होता है साथ ही वह व्रती यह सोचता है कि मैंने विवाह कराया है मैथुन नहीं अतः व्रतकी सापेक्षतासे भंग नहीं होता, अतः यह अतिचार हैं।
शंका-कोई यह कहे कि परविवाहकरणमें कन्यादानके फलकी इच्छा उसका कारण बताया हो तो वह व्रती सम्यग्दृष्टि है या मिध्यादृष्टि ? यदि सम्यग्दृष्टि है तो उसे फलकी इच्छा नहीं क्योंकि सम्यग्दृष्टि ऐसी इच्छा न करे। यदि मिथ्यादृष्टि है तो उसे व्रत ही नहीं होता, अत: पर विवाहकरण अतिचारका यह कारण कैसे हो सकता है।
उत्तर-सत्य है, पर ऐसी अव्युत्पन्न दशामें ही- जब सर्वथा मिथ्यादृष्टि नहीं हुई, न सर्वथा सम्यग्दृष्टि उत्पन्न हुई है ऐसी दशामें ही यह संभव है या ऐसी इच्छा संभव है और भद्रिक मिथ्यादृष्टिवालेको गीतार्थ पुरुष सन्मार्ग प्रवेश करानेके लिये भी अभिग्रह देते हैं जैसे श्रीआर्यसुहस्ती आचार्यने रंकको सर्वविरतिव्रत ग्रहण कराया था।
- अपनी संतानका विवाह करना और परविवाहको वर्जनीय कहना न्याय्य है अन्यथा अविवाहिता कन्या स्वच्छंदचारिणी हो जाती है उससे शासनकी भी अवहेलना होती है। विवाहिता हो जानेसे व्रतबंध विवाहके कारण वह वैसी नहीं होती। कहा है कि
___ "स्वापत्येष्वपि संख्यामिग्रहो न्याय्यः" अपने बच्चोंके विवाह करानेकी संख्याका भी अभिग्रह न्याय्य है।