________________
२०२ : धर्मविन्दु
पूर्ण होने पर पुनः लेनेकी इच्छा करता है, वह कुछ विरतिकी हानि, होनेसे व सापेक्षता से भंग न होनेसे अतिचार होता है ।
धन-धान्य- धनके चार प्रकार हैं- १ गणिम - गिनने योग्य -सुपारी आदि वस्तुएं अथवा रूपये, पैसे । २ घरिम - तोलने योग्य गुड आदि वस्तुएं | ३ मेय- नापने योग्य घृत, दुग्ध आदि तथा 8 परिच्छेद्य-परीक्षा योग्य हीरा, माणिक, मोती आदि और धान्य- मूंग, उडद, गेहूं आदि इनका जो परिमाण किया हो उस मर्यादाका उल्लघन करने से अतिचार होता है । यदि धनके निश्चित किये हुए प्रमाणसे अधिक उसे कोई दे तो उसे व्रतभंग के भयसे चातुर्मास आदिकी समाप्ति पर या अपने पास के ऐसे द्रव्यको बेचने के बाद ग्रहण करूंगा इस भावनासे बंध बाधकर या निमंत्रणा करके अथवा रस्सी आदिसे बाधकर अथवा वचन लेकर उसे स्वीकार करके भी उसीके घर रहने दे या दूसरे के यहा रखे तो वह अतिचार होता है । इसमें भी स्वयं लेनेसे अभग, पर इस प्रकार ग्रहण कर लेनेसे भंग हो गया. अतः भंगाभंगसे अतिचार हुआ ।
दासी - दास - इसमें द्विपद तथा चतुष्पद (पशु) सबका समावेश हो जाता हैं । द्विपदमे पुत्र, पुत्री, स्त्री, दास, दासी, शुकसारिका तथा चतुष्पदमें गौ, ऊंट, भैस, घोडा आदि आते है । उनके परिमाणसे ज्यादा न होना चाहिये । उनका गर्भाधान करानेसे अतिक्रम - अतिचार होता है । यदि एक वर्षका परिमाण किया हो तो गर्भाधान से संवत्सर के बीच में प्रसव हो जानेसे व्रतभंग नहीं भी होता है, अतः वर्षमें काफी समय बीत जाने पर जो गर्भाधान होता है वह
1
14
है