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गृहस्थ विशेष देशना विधि : १९ फलाकी उपमोग करती थी और अपने भोग' और ऐश्वर्यसे अप्सरीओंक गैविकी भी हरण करती थी।
वह जितशत्रु राजा, जिससे सर्व दूषण दूर भागते थे, अपनी प्रियाके साथ पंच प्रकारके मनोहर भोग भोगता हुआ रहता था।
उस समय उसी शहरमें समुद्रदर्स मामक सेठ रहता था। उसके पास कई सेवक तथा जनावर थे। उसके भंडीर घान्य से भरपूर थे और वह स्वर्ण आदि धातुएं तथा भणि, माणिक, शिला, मुक्ता, प्रवाल, अमराग, वैडूर्य, चन्द्रकान्त, इन्द्रनील, महानील, राज
आदि उत्तम प्रकारके पदार्थोंसे परिपूर्ण समृद्धिवान तथा कुवेरके गर्वको हरण करनेवाला था। वह दीन, अनाथ, अंध, पंगु आदि प्राणियोंके शोकका हरण करानेवाला था। वह चणिक शिरोमणि, सुंदर आकृतिवाला तथा सर्व शुभ गुणोंका आगार था। ... उसको सुमंगला नामक पतिव्रता स्त्री थी। वह स्त्री सर्व लावण्यके गुणोंका भाँधीर, सर्व कल्याणकारी वस्तुओंको उदाहरण स्वरूप पुण्यरलोक महामहाररूप, स्वर्कुल सततिके आभूषणरूप और कोमलतामें वनलताके समान तथा संघर्मचारिणी थी। उसके साथ गाढ अनुरागसे बद्ध वह सेठ'विषयसुख सागरमें निर्मम होकर समय व्यतीत करता था। . समुदत्त और सुमंगलाके समय व्यतीत होने पर उनके निर्मल आचारसे पवित्र, प्रियकर, क्षेमकर, धनदेव, सोमदेव, पूर्णभद्र और माणिभद्र नामक छ पुत्र उत्पन्न हुए। वे स्वभावसे ही गुरुजनोंका विनयं करनेमें तत्पर थे। उनका परम कल्याणकारी और शुद्ध धर्म,
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