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गृहस्थ विशेष देशना विधि : १९३ बोरीकी वस्तु लेनेवालो या बेचनेवाला, चोरको अन्न देनेवाला और स्थान देनेवाला ये सात प्रकारके चोर कहे गये हैं। ___ चोरी करनेसे व्रतमंग होता है। मैं चोरी नहीं करूंगा पर मुझे व्यापार करना है (चाहे कैसा ही हो) ऐसा ध्यान करके व्रत ग्रहण करनेवालेको व्रतभंग नहीं होता । पर देशसे पालन तथा देशसे भंगजो कि लोभके कारण चोरी हुई वस्तु लेनेसे होता है-के कारण अतिचार है।
विरुद्ध राज्यातिक्रममें व्यापार वास्ते अथवा अन्य कारणसे अन्य राज्यमें भाज्ञा बिना चोरीसे नाना विरुद्धराज्यातिकम है। ऐसे व्यक्तिको राज्यद्वारा दंड भी होता है, यह चोरीके समान है।
"सामी जीवादत्तं तिथयरेणं तहेव य गुरूहिं ". जो 'पक्सीसूत्र में कहा है उस योगसे भी स्वामीअदत्त होनेसे यह चोरी या व्रतभंग है । तथापि यदि केवल व्यापारके लिये हो तथा चोरी करनेकी इच्छा न हो, साथ ही यह चोर है। ऐसी बात न होनेसे यह देशभग होता है और देशसे पालन भी होता है, अतः यह अतिचार है।
न्यूनाधिक नाप, तौल रखना तथा प्रतिरूपक व्यवहार दूसरेको ठगनेके कारण तथा परंद्रज्यके ग्रहणसे व्रतमंग ही है। केवल सेध लगाना अथवा पराई वस्तु उठाना ही चोरी है पर न्यूनाधिक नाप, तौल और प्रतिरूपक व्यवहार यह वाणिज्य कलाएं हैं ऐसा मानकर व्रत लेनेवालेके लिये व्रतभंग नहीं, पर अतिचार है।
स्तेन प्रयोग आदि पांचों अतिचार वस्तुत: चोरी ही है अतः