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गृहस्थ विशेष देशना विधि : १८५ पीटना है, अर्थात् निरर्थक तथा निरपेक्षरीतिसे त्याज्य है । सार्थक और सापेक्षका वर्णन यहां दिया जाता है। प्रथम तो श्रावक इस प्रकार रहे कि सर्व जन उससे मानते रहे। यदि कोई विनय न करे तो उसके मर्मस्थलको छोड कर हाथ, पैर अथवा रस्सी या लकडीसे एक या दो बार ताडन करना चाहिये ॥२॥
। छविच्छेद भी उसी प्रकार समझना । हाथ, पैर, कान, नाक आदिका काटना त्याज्य है, जो निर्दवतासे व निरपेक्ष हो । सापेक्ष व सार्थक, गण्ड, व्रणसंधिका छेदन अथवा डाम (जलाना-किसी अंगको ठीक करनेके लिये ) देना है ॥३॥
अतिभारका आरोपण करना ही नहीं चाहिये। पहले तो श्रावक द्विपद आदि वाहनसे होनेवाली आजीविका छोड दे। यदि कोई अन्य आजीविका न मिल सके तो वह व्यक्ति जितना बोझा स्वयं उठा सके या नीचे रख सके उतना ही उसे देना चाहिये । चतुष्पद आदिको जितना योग्य हो उससे कुछ कम-भार लादना चाहिये और हल, बैलगाडी आदिको उचित समय पर छोड देना चाहिये ॥४॥
किसी भी प्राणीका भोजन और पानका विच्छेद नहीं करना चाहिये । अन्यथा तीन क्षुधावाला मृत्युको प्राप्त हो जाता है। इसका विच्छेद भी बंधके दृष्टातकी तरह सार्थक व निरर्थक समझ लेना चाहिये । सापेक्ष निरोध रोगचिकित्सा आदिके लिये हो सकता है। अपराध करनेवालेको वचनसे ही कहना बहुत है पर द्रव्यसे निरोध करना न चाहिये । रोग-शाति आदि निमित्तसे उपवास भी कराया जा सकता है ॥५॥