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गृहस्थ विशेष देशना विधि : १८९ है। यद्यपि वह अपने व्रतकी रक्षाके लिये स्वयं झूठ न बोलने पर दूसरेके द्वारा झूठ बुलवाये या परवृत्तांत कहलाने मिथ्या उपदेश करे वह अतिचार है। वह अपने व्रतका रक्षण करनेके लिये न बोले पर अन्यको मृषावादका उपदेश करे या उसे उसमें प्रवृत्ति करावे तो वह भंग हुआ तथा न हुआ-दोनो होनेसे व्रतका अतिचार है जैसे, " देशाद् भङ्ग अनुपालनाच" देशसे भंग तथा देशसे पालनया वहिर्वृत्तिसे पालन, अंतर्वृत्तिसे भंग-यह अतिचार हुआ।
रहस्याभ्याख्यानमे असत् दोष दिया जाता है या झूठी बातको कहा जाता है अतः निश्चय व्रतभंग ही है, अतिचार नहीं।
यह शंका सत्य है पर जब दूसरेको हानि करनेवाला वाक्य अनजानमें कहा जाय तो उसमें सक्लेश (कष्ट देनेका) भाव न होनेसे व्रतभंग नहीं होता परंतु दूसरेको हानि होती है अतः भंग भी हैं । इस तरहसे भंग, अभंग होनेसे अतिचार ही होता है। पर यदि तीव्र संक्लेश (कष्ट पहुंचानेकी इच्छा से कहे तो व्रतभंग ही है क्योकि वहां व्रतकी अपेक्षा नहीं रही। कहा है कि--
"सहसऽभक्खाणाई, जाणंतो जइ करेइ तो भगो।
जह पुणणाभोगाईहिंतो तो होइ अइयारो" ॥१०६॥ । - -यदि जान बूझ कर सहसात्कार करे तो व्रतका भंग होता है पर अनजाने कह देनेसे अतिचार ही होता है ।। - किसीके प्रति बुरा विचार प्रगट करना अनुचित है। किसीको बात करते देख कर ऐसी बात करते हैं, ऐसा निश्चय करना तथा दूसरों पर प्रकट करनेसे बिलकुल झूठी बात बहुत फैल जाती है