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गृहस्थ विशेष देशना विधि : १८२ तथा-व्रतशीलेषु पञ्च पञ्च यथाक्रममिनि ॥२२॥(१५५)
मृलार्थ-अणुव्रत और शील व्रतके प्रत्येकके पांच पांच अतिचार हैं। ॥२२॥
विवेचन-व्रतेपु-हणुनतो, शीलेषु- शीन्त्रन अर्थात् गुणस्त तथा शिक्षात्रत-सदमें, यथाक्रमम्-अनुक्रमझे ।
श्रावकके सभी बार बतोमें जिसमें ५ अणुव्रत, ३ गुणत्रत तथा १ शिक्षाक्त हैं, प्रत्येक पांच पाच अतिचार होते हैं। उसमें पहले कणुनतके अतिचारवन्धवधच्छविच्छेदानिभारारोपणानपाननिरोधा
। इति ॥२३॥ (१५६) मृलार्थ-वन्ध, बध, चर्म या अंगछेदन, अतिभार रखना तथा अन्नपानको रोकना-ये पांच प्रथम व्रतके अतिचार हैं।॥२३॥
विवेचन-स्थूल प्राणातिपात विरमण त नामक पहले अणुबदके बन्ध, वय, छविच्छेद, पतिमार आरोपण तथा अन्नपान निरोध- पांच अतिचार हैं । वंका अर्थ रस्सी आदिसे वांवकर संयम करना या रोकन्न । वधका मर्थ चाबुक आदिसे मारना । छवि + च्छेदः छविच्छेद अर्थात् चर्म या अंगका मेदन ग तलवार, छुरी आदिसे काटना । अतिभारारोपणका अर्थ बैल आदिके पृष्ठ पर सुपारी गदि किसी भी पदार्थका बहुत ज्यादा बोझा लादना या मनुप्यके ऊपर भी बहुत सामान देना अथवा गाडी आदिमे पशुके सामर्थ्यसे अधिक मार लादना है । अन्नपान निरोधका व्यर्थ है भोजन,