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गृहस्थ विशेष देशना विधि : १७३ यथोचित समय पर मंत्री आदि नगरके प्रधान व्यक्तियों सहित नगरके बाहर ईशान दिशामें स्थित मनोरम उद्यानमें चले गये। वे छहों श्रेष्ठीपुत्र हिसाव आदि करलेमें व्यग्र हो जानेसे " अभी जाते हैं, अभी जाते हैं" सोचते हुए सन्ध्या समय तक दुकानसे वाहर न जा सके।
सूर्य अस्त हो गया और ज्यों ही वे वेगसे बाहर जाते समयमानों उनके जीनेकी आशाके साथ ही नगरद्वारके दानों पुर वद हो बानेसे उनके जीनेकी आशा भी जाती रही। अपने जीवनको बचानेके लिये कोई न देखे उस प्रकार लौट कर गृहके अंदर गुप्ठभूमिमें जाकर छिप गये । धारिणी रानी मी श्रेष्ठ शृंगार धारण करके अतःपुर तथा परिवार सहित रात्रिमें उस पुरुष रहित नगरमें घूमने लगी।
प्रातःकाल होने पर कमलको विकसित करनेवाला, टेसूके समान चमकते हुए रंगसे दिशा मंडलोंको रंजित करनेवाला जगत्के नेत्रसमान सूर्य उदय हुआ । उस समय राजाने पुरुषोंके नगरमें प्रविष्ट होनेसे पहले नगर स्खकोंको आज्ञा दी-" इस शहरको भलो भाति देख कर पता लगाओ कि कोई मेरी आज्ञा भंग करनेवाला व्यक्ति तो वहां नहीं हैं " - नगरको देखते हुए वे यमके दूत समान नगररक्षक उन छ श्रेष्ठि पुत्रोंके समीप भाये तथा उनको पकड कर राजाके समक्ष ले गये । तब उस राजने क्रोधसे कुपित होते हुए यमराजाके समान भीषण अकुटी सहित ललाटसे उन श्रेष्ठी पुत्रोंको वध करनेकी आज्ञा