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१७२ : धर्म विन्दु
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-अर्थ व काम नामक त्रिवर्ग पर पूर्ण अनुराग था । उनके लोकप्रिय स्वभावसे कीर्तिकामिनी उनका वरण कर चुकी थी। वे सर्व सज्जनोंके मनको संतोष देनेनाले और दया, दान व दाक्षिण्य आदि महत् गुणोंसे अलंकृत थे। उनके सुंदर शरीरकी लावण्यता कामदेवकी सुंदरता को नीचा दिखती थी। उन छहों पुत्रोंने वणिक जनों के योग्य श्रेष्ठ व्यवहारसे अपने पिताको कुटुंबकी चिंताके अतिशयं भारसे मुक्त - कर दिया था ।
एक समय अतः पुरमें जब राजा जितशत्रु सुंदर वाद्य 'बजा रहे थे, उनकी सी धारणीने अनेक अवयवोके हावभावसे अति आनंद-दायक नृत्य किया । राजाने हर्षातिरेकसे रानीको वरदान मागनेको कहा। घारणी बोली-" अभी वह वरदान आपके पास रहने दो, मैं अपनी इच्छाके समय वरदान मांग लूंगी " । कुछ समय व्यतीत होने पर कामीजनोके विलास व उल्लासका सहायक शरद पूर्णिमाका - दिवस आया। उस देवीने राजासे जाकर कहा - " हे देव ! प्रथम दिये हुए वरदानको अर्पण करो । आज रात्रिमें जब कर्पूरके समान उज्ज्वल चंद्रकिरणों से सब दिशाएं व्याप्त हैं, मैं इस महान नगरीको अपने पूर्ण परिवार सहित तथा शेष अंतःपुर सहित सब चौराहे, बाजार आदि रमणीय प्रदेशों की सुंदरता को देखनेके लिये इधर उधर सर्वत्र घूमनेकी अभिलाषा रखती हूं।
तब राजाने नगरमें सर्वत्र यह घोषणा करवाई कि आज रात्रिमें सर्व पुरुष (नर) नगर छोड कर बाहर चले जाय । सर्व जन अपनी अपनी अनुकूलताको देख कर गहरसे बाहर जाने लगे। राजा भी