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गृहस्थ विशेष देशना विधि :१६७ स्वरूप व मैदीको वर्णन करके विधिसहित अणुव्रत आदि श्रीवकके १३ अतोको दान करें, जब वह धर्मग्रहण करने को तत्पर हो।
बिना यतिधर्म कहैं श्रीवक धर्म प्रदान करे तो जो दोष होता
- सहिष्णोः प्रयोगेऽन्तसय इति ॥९॥ (१४२) १, मूलार्थ-समर्थ व्यक्तिको व्रतदानसे यतिधर्ममें अन्तराय होता है।
विवेचन सहिष्णोः उत्तम (यति) धर्मका पालन करने में समर्थ, प्रयोगे-अणुव्रत आदिका दान करनेसे, अन्तरीय चारित्र धर्म पालनमें रुकावट।
यदि वह व्यक्ति चारित्र धर्मका पालन करने योग्य है, समर्थ है और उसे श्रावकके ३२ त प्रहण करा दिये जाय तो गुरुद्वारा चारित्र पालनमें अंतराय किया जाता है। इस अंतरायसे 'गुरुको भी भवांतरमें चारित्र प्राप्ति दुर्लम होती है, अतः प्रत्येकको उसके योग्य धर्म प्रदान करना चाहिये। .. अनुमतिश्चेतरत्रेति ।।१०।। (१४३)
मूलार्थ-श्रावक धर्म देनेसे अनुमोदनी दोष आता है ॥१०॥
विवेचन अनुमति अनुज्ञा दोष उसकी अनुमोदना, इतरत्रअणुव्रत आदि देनेसे सौगध लिये हुए साँवा अंशसे गमन, विना सौगंध लिया हुभी सविध अंशका।