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गृहस्थ देशना विधि : १५७ विवेचन-दुःखविच्छेदात्-शरीर व मनके सब दुखोंको अंत करनेवाला, देहिनाम्-व्यक्ति (सुननेवाले ), धर्मदेशनादेशनासे उत्पन्न मार्ग में श्रद्धा आदि गुण ।।
देशना योग्य प्राणियोको इस जगतमें किसी भी काल या क्षेत्रमें शरीर व मनके दुःखोंको नाश करनेमे धर्मदेशना जितनी उपकारक है उतना उपकार किसी अन्य पदार्थसे संभव नहीं। देशनासे मार्ग श्रद्धा आदि गुण पैदा होते हैं। सारे क्लेशोसे पूर्णतः रहित मोक्षको लानेमें वह गुण सफल (अवन्ध्य ) कारण है। धर्मदेशनासे मार्ग पर श्रद्धा होती है, तथा उससे मोक्ष मिलता है। अत बोध देने में पालस नहीं करना । श्रोता देशनाश्रवणमें आलस न करें। ___ ज्ञान प्राप्त होनेसे अज्ञानांधकारका नाश होता है तब हेय व उपादेयका यथार्थ ज्ञान होता है। जितना भी ज्ञान प्राप्त हो उसे काममें लाना चाहिये । उससे अधिक ज्ञान प्राप्त करनेके योग्य बनते हैं और अधिक ज्ञान मिलता है।
श्रीमुनिचन्द्रसरि द्वारा विरचित धर्मविन्दुकी टीकाका देशनाविधि नामक द्वितीय अध्याय समाप्त हुआ।