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गृहस्थ देशना विधिः १५५
— हिंसादिके नाश करनेवाले सत्यधर्मके प्रति राग, द्वेष व मोहादिकसे मुक्त - १८ दोष रहित देवके प्रति; और द्रव्य तथा भाव दोनों परिप्रहरहित साधुके प्रति जो निश्चल अनुराग पैदा हो उसे संवेग कहते हैं। सुधर्भ, सुदेव व सुगुरुके प्रति पूर्ण श्रद्धा ही संवेग है ।
गीतार्थ साधु ही श्रोताको उपदेश दे । अन्य उसका अधिकारी नहीं है । 'निशीथसूत्र' में कहा है कि
'संसारदुक्खमहणो, विवोहणो भवियपुंडरियाणं । धम्मो जिणपन्नत्ता, पकप्पलइणा कहेयव्वो " ॥९७॥
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-- संसारके दुखको नाश करनेवाला, भविजनरूपी कमलकों विकसित करनेवाला या प्रतिबोध करनेवाला और जिन भगवंतद्वारा निरूपित धर्मको ' निशीथसूत्र का अध्ययन किया हुआ मुनि कहे ।
वह मुनि अपने वोधके अनुसार धर्मोपदेश दे । इसके लिये कहा है कि——
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'न ह्यन्धेनान्यः समाकृष्यमाणः सम्यगध्वानं प्रतिपद्यते " । -अंधा मनुष्य अधेद्वारा मार्ग दिखाये जाने पर सही राह नहीं पा सकता ।
वह गीतार्थ धर्मके बारेमें शास्त्र श्रवणकी इच्छासे उपस्थित श्रोताको उपदेश दे । मुनिके मनमें धर्मकी वासना जत्रत हो । श्रोताजनों पर अनुग्रह करनेमें तत्पर प्रशंसनीय महामुनि श्रोता जनको धर्मोपदेश दे ।