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गृहस्थ देशना विधि : १३९ शंका-परलोक है ही नहीं। .
उत्तर-सर्व शिष्ट जनोंने प्रमाणके बलसे परलोककी स्थितिको स्वीकार किया है वह प्रमाण इस प्रकार है।
मनुष्यको जितनी अभिलाषाए होती हैं वे सब एक दूसरेसे संबंधित रहती हैं। यदि एक अभिलाषा हुई तो उससे पूर्व किसी अभिलापासे अवश्य ही उसका संबंध होता है, जैसे-यौवनावस्थामें होनेवाली अमिलाषाएं बाल्यावस्थाकी अभिलापाओंसे संबंधित हैं। अतः जब नया जन्मा हुआ बालक आंखें खोल कर माताके स्तनकी ओर देखता है और स्तनसे दुग्धपानकी आशा करता है वह निश्चय ही पूर्वकी किसी अभिलाषासे संबंधित है। वह पूर्वभवके ससारके कारण ही है, अत' उसका पूर्व जन्म था जिससे परलोक सिद्ध होता है। ऐसी कई युक्तियों से एक इस प्रकार है
प्रो० मेक्समूलर लिखते हैं कि, किसी मनुष्य को प्रथम देखते ही अपने मनमें उसके प्रति स्वत प्रेमभाव या द्वेषभाव जाग्रत होता है, वह उस व्यक्तिके तथा अपने पूर्वभवके प्रेमसंबंध या शत्रुताके कारण होता है। ऐसी युक्ति पूर्व जन्म और पर जन्मको सिद्ध करती है, अतः आत्मा व शरीर भिन्न है। तथा-देहकृतस्यात्मनाऽनुपभोग इति ॥६१।। (११९)
मूलार्थ-देह व आत्माको सर्वथा भिन्न माननेसे देहद्वारा उपार्जित कर्मका आत्माद्वारा उपभोग न होना चाहिये ।।६१॥
विवेचन-सर्वथा देह व आत्मा भिन्न माननेसे जैसा कि 'साख्यमत' में माना है तो दूसरोको मारना पीटना, तिरस्कार,.