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१४२ : धर्मविन्दु
विवेचन- अतः- एकान्तवादसे, अन्यथा- भिन्न अर्थात् आत्मा नित्यानित्य व देहसे भिन्न व अभिन्न है। एतदसिद्धिःहिंसा आदिका होना सिद्ध होता है, उससे आत्माको होनेवाला बंध व मोक्ष सिद्ध होता है।
एकान्तबादसे भिन्नम न्यता होनेसे अर्थात् आत्मा नित्यानित्य है तथा शरीरसे भिन्नाभिन्न है ऐसा माननेसे हिंसा आदि दोप व पापकर्मकी युक्तता सिद्ध होती है। उससे आत्माका बध स्वीकार होता है और उस बंधसे मुक्त होनेका अनुष्ठान आदि भी यथार्थ है। यही तत्त्ववाद है और नास्तिक या अतत्त्ववादीसे यह नहीं समझा जा सकता। ___इस तत्त्ववादका निरूपण करके कया करना चाहिये सो कहते हैं
परिणामपरीक्षेति ॥६५॥ (१२३) मूलार्थ-श्रोताके परिणामकी परीक्षा करना चाहिये॥६५॥
विवेचन- परिणामस्य- तत्त्ववादके विषयमें ज्ञान व श्रद्धाके लक्षणकी, परीक्षा- एकांतवादकी ओर अरुचि तथा तत्त्ववादकी स्तुति आदि उपायसे उसके परिणामकी परीक्षा करे। उसके बाद क्या करे ? कहते हैं
शुद्ध वन्धभेदकथनमिति ॥६६॥ (१२४) मूलार्थ-शुद्ध परिणाम देख कर बन्धभेदका वर्णन करना चाहिये ॥६६॥