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गृहस्थ सामान्य धर्म : ६९
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करते रहना चाहिये। अनुबन्ध वन्ध्या स्त्रीकी भांति कोई गौरव
पर भी प्रारंभ किये हुए कार्यको
बिनाके जो प्रयत्न या कार्य हैं वे नहीं प्राप्त कर सकते। उल्टे उसकी अवहेलना होती है।
तथा - कालोचितापेक्षेति २९ ||५४|| मूलार्थ - कालके अनुसार योग्य वस्तुको अंगीकार करना चाहिये ॥ ५४ ॥
विवेचन- अपेक्षा - अंगीकार ।
जिस समय जो वस्तु हो या उपादेय हो तब उसका त्याग या उपार्जन करना चाहिये । उपादेय वस्तुका अतिनिपुण बुद्धिसे विचार करके उसे अंगीकार करना चाहिये । यह बुद्धिमानका लक्षण है और यह सब प्रकारसे लक्ष्मीकी प्राप्तिका हेतुरूप होता है । कहा भी है कि-
" यः काकिणीमप्यपथाप्रपन्नामन्वेषते निष्कसहस्रतुल्याम् । कालेन कोटीण्यपि मुक्तहस्तस्यानुबन्धं न जहाति लक्ष्मीः” ॥ ४२ ॥
- जो व्यक्ति कुमार्गमें पडी कौडीको भी हजार मोहरोंकी भांति ढूंढता है और समय पर खुले हाथो करोडों रूपये का दान भी कर देता है, लक्ष्मी उससे अपना संबंध नहीं तोडती ।
तथा - प्रत्यहं धर्मश्रवणमिति ३० ॥ ५५ ॥
मूलार्थ - प्रतिदिन धर्मश्रवण करना चाहिए ॥ ५५ ॥
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विवेचन - जैसे एक पुरुष किसी युवतीके साथ एकांत में बैठा
हो और किन्नरका गीत सुनाई देने पर जिस रुचिसे वह सुने उतने