________________
गृहस्थ देशना विधि : १०३ समृद्धि, उनका रूप, लक्षण आदिका इस प्रकार वर्णन करे। उनका उत्तम रूप, संपत्ति, सुंदर स्थिति, प्रभाव, उत्तम सुख व उसके साधन, कांति, लेश्या, शुद्ध इन्द्रिये, अवधिज्ञान, भोगके उत्तमोत्तम साधन और दिव्य विमान आदि उनकी ऋद्धिका वर्णन (जो आगे कहा जायगा) श्रोताको वतावे ।। ____ सत्कार्य, शुभ वचन, प्राणीप्रेम, इन्द्रिय तथा मनका निग्रह भादि गुणों पर अनुराग तथा उनकी प्राप्ति व पालनसे ऐसी ऋद्धि मिलती है। देवऋद्धि भी मोक्ष सुखके सामने दुखप्रद ही है पर बाल जीवोंको देवऋद्धि बताना चाहिये ताकि वे उस ओर बढ़ें।
तथा-सुकुलागमनोक्तिरिति ।।१७।। (७२) मूलार्थ-और उत्तम कुलमें जन्म होनेका कहे ।
विवेचन-देवस्थानसे च्युत होकर वह फिरसे मनुष्य योनिमें आता है और तब वह अच्छे देशमें तथा निष्कलंक, सदाचारी व प्रसिद्ध ऐसे उत्तम कुलमें जन्म लेता है। साथ ही वह जन्म निर्दोष व अनेक मनोरथों की पूर्ति करनेवाला होता है; इत्यादि कहे और यह सब मनुष्य जन्ममें किये हुए सुकृतका ही फल है। तथा-कल्याणपरम्पराख्यानमिति ॥१८॥ (७६) मूलार्थ-और उसे कल्याण परंपरा प्राप्त होती है ऐसा
कहे।
- विवेचन-उस उत्तम कुलमें आकर उसे कल्याण परंपरा प्राप्त होती है अर्थात् सुंदर रूप, अच्छे लक्षण, निरोगी काया, शक्तिवाली