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१२० धर्मविन्दु है- जैसे स्वर्ण परीक्षामें कसौटी पर रेखा खींचते हैं वैसे विधिनिषेध धर्मकी कसौटी है। । स्वर्ग और केवलज्ञान चाहनेवाला तप, ध्यान तथा पंच समिति, तीन गुप्ति सहित शुद्ध क्रिया करे, साथ ही असत्य, चोरी आदि न करे । ये विधि निषेध धर्मकी कसौटी हैं। जिस धर्ममें कहे हुए विधि व निषेध जगह जगह पुष्कल मिलते है वह धर्म कषशुद्ध है, परंतु
अन्यधर्मस्थिताः सत्त्वाः, असुरा इव विष्णुना। उच्छेदनीयास्तेषां हि, वधे दोषो न विद्यते" ॥८९॥ ----" जैसे विष्णुने असुरोका नाश किया, वैसे ही अन्यधर्मीको मार देना चाहिये । उन प्राणियोंका उच्छेद या वध करने में कोई दोष नहीं " ऐसे वाक्यवाला धर्म कसौटी शुद्ध नहीं है। - छेदका स्वरूप कहते है-- तत्सम्भवपालनाचेष्टोक्तिश्छेद इति ॥३६॥ (९४)
मूलार्थ-उनकी उत्पत्ति तथा पालन करनेकी चेष्टाको कहना छेद है।
विवेचन-तयो:-विधि-निषेधका, सम्भव-उत्पत्ति, पालनाउनका पालन व रक्षा, चेष्टा-भिक्षार्टन' आदि बाह्य क्रियारूप चेष्टा, उक्ति-कहना।
विधि-निषेध यदि न हों तो उनको उत्पन्न करके भी उनकी रक्षारूप पालना करना तथा उसकी जो शुद्ध चेष्टा हो जैसे भिक्षाटन आदि उसे कहना चाहिये।