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१३० : धर्मविन्दु माना जाय तो आत्माकी सांसारिक व मोक्ष अवस्था समान होती है तब 'योगशास्त्र में मोक्ष पानेके लिये कहे हुए यम-नियम आदि क्रिया अनुष्ठान व्यर्थ है। ____कर्म सत्य है। बिना कर्मके केवल राग-द्वेषसे आत्मा नहीं बंधता । 'बौद्धधर्म' में कहा है
"चित्तमेव हि संसारो, रागादिक्लेशवासितम् । तदेव तैर्विनिमुक्तं, भवान्त इति कथ्यते" ॥१०॥
-रागादि क्लेशसे संस्कारित चित्त ही संसार है, जब चित्त उन रागादि क्लेगोसे मुक्त हो जाता है तो भव-संसारका अन्त हो जाता है, या मोक्ष होता है।
आत्मा राग आदिके बन्धनसे ही नहीं बंधती। राग आदि होनेसे कर्मद्वारा वन्धन होता है। राग व द्वेष चिकनाईके सदृश है जिनसे कर्मरूपी रज आत्मारूपी वस्त्र पर चिपकती है। चित्तसे आत्मा नहीं बंध सकता । जैसे पुरुष बन्धनमें पडता है तब बंधन करनेवाली वस्तु भिन्न होती है, उसी भांति आत्मा कर्मद्वारा बांधी जाती है, अपने आप नहीं बंधती। बन्ध व मोक्षके हेतुका विचार करते हैहिंसादयस्तद्योगहेतवः, तदितरे
तदितरस्य ॥४९॥ (१०७) मूलार्थ-हिंसा आदि वन्धनके कारण हैं, उससे भिन्न (अहिंसादि) मोक्षके ॥४९॥