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गृहस्थ देशना विधि : १२३ सामर्थ्य व असामर्थ्य बतावे । उनका भेद बताकर उत्तम, मध्य व कनिष्ठ कौन है वह बतावे।
उसे बताते हैं--- ___ कषच्छेदयोरयत्न इति ॥३९।। (९७) । मूलार्थ-कप व छेदसे ही वस्तुका आदर न करे ॥३९॥
विवेचन-कसौटी व छेद केवल इन दो परीक्षामोंके सामर्थ्यमें विश्वास न करे। इससे ही वस्तु आदर करने लायक नहीं होती। क्यो कि उससे कोई तात्पर्य नहीं ऐसा बुद्धिमान कहते हैं ।
उसका कारण बताते हैं-- तभावेपि तापाभावेऽभाव इति ॥४०॥ (९८) __ मूलार्थ-कप, छेदके होने पर भी तापके अभावमें उनका भी अभाव समझे ॥४०॥
विवेचन-कष व छेद दोनो परीक्षा कर लेने पर भी यदि उक्त प्रकारकी ताप परीक्षा न हो तो उन दोनोंका भी अभाव समझना | वह परीक्षा भी हुई, न हुई बरावर है। तापमें न रखा हुआ स्वणे कसौटी और छेद परीक्षाके हो जाने पर भी अपना शुद्ध स्वरूप प्राप्त करनेको समर्थ नहीं। वह तो नाम मात्र ही स्वर्ण है (जैसे यदि गरम करने पर रंग बदल जाय तो वह स्वर्ण नहीं है। यद्यपि कष व छेदसे स्वर्ण ही दीखे) ऐसे ही जो श्रुतधर्म ताप सहन न कर सके वह प्रमाणभूत नहीं है ।
-तापशुद्धि न होने पर कप व छेदशुद्धि शुद्धि क्यो नहीं ! कहते हैं