________________
गृहस्थ देशना विधि : १०२ इच्छा न रख कर, दूसरे यथाशक्ति । फल दो प्रकारके हैं--लौकिक व पारलौकिक, इनकी इच्छा किये बिना धर्मकार्य करना उत्तम है। इच्छा या वासना रखनेसे कर्मबन्धन होता है, उसे जन्म मरण मुक्ति नहीं मिलती। दूसरे यथाशक्ति धर्मक्रिया करें। शक्तिसे अधिक कार्य करनेसे पीडा, आध्याने, तथा उत्साह भंग होता है। उत्तरो. तर धर्मक्रियामें शक्ति अनुसार बढना ही ठीक है। तथा-अशक्ये भावप्रतिपत्तिरिति ॥१३॥ '७१)
मूलार्थ-और अशक्य होने पर उस ओर भावना रखे । विवेचन-अशक्ये-धैर्य, शरीररचना (बंधारण) काल तथा बलमेंसे एक या सबकी शक्ति कम होने पर ज्ञानाचार आदि विशेष धर्मका पालन न किया जा सके तो भावप्रतिपत्तिः-प्रवृत्ति विना भी भाव या अंतःकरणसे अंगीकार करना ।
धैर्य, संहनन (गरीररचना) काल व बल किसी भी कभीसे ज्ञानाचार आदि आचारोंका पालन न कर सके तो उस ओर शुम भावना रखे; भावनासे अंगीकार करे। विचार व भावना उच्च रखे पर उसमें प्रवृत्ति न करे, कारण कि योग्य समय तथा शक्ति बिना व्यर्थका उत्साह तत्त्वतः आर्तध्यान है । क्योंकि
"अकालौत्सुक्यस्य तत्त्वत आर्तध्यानत्वादिति ॥ तथा-पालनोपायोपदेश इति ॥१४॥ (७२) मूलार्थ-ज्ञानादि आचारके पालनका उपदेश करे। विवेचन-ज्ञानादि आचारका वर्णन किया जा चुका है। उनको