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७ : विन्दु . प्रेमभाव व रुचिसे प्रतिदिन धर्मस श्रवण करना चाहिये। धर्मशास्त्रका श्रवण करनेसे अगणित गुण उत्पन्न होते है। कहा है कि--- 'क्लान्तमुपोज्झति खेद, तप्तं निर्वाति वुध्यते मूढम्। स्थिरतामेति व्याकुलमुपयुक्तसुभापित चेतः" ॥४३॥
-गुणवाना पुरुषका उपयुक्त सुवचन ग्लानियुक्त पुरुष चित्तके खेदको दूर करता है, तप्त चित्तको शात करता है, मूर्खको प्रतिबोध देता है तथा व्याकुल चित्तको स्थिरता देता हैं। -
तथा-सर्वत्राभिनिवेश इति ३१ ॥५६॥
भूलार्थ-सद कार्योंमे कंदाग्रहका परित्याग करना चाहिए ।। ५६ ।।
विवेचन-सर्वत्र-सभी कार्योंमें, अभिनिवेश-झूठी या गलत वातका आग्रह ( कदाग्रह ) छोडना ।
बुद्धिमान लोग सभी कार्योमे कदाग्रह छोड देते हैं। दूसरेका पराभव, हार करानेकी इच्छासे न्यायमार्ग छोड कर अनीतिका कार्य आरंभ करनेको अभिनिवेश कहते है उसे छोडना चाहिये। नीतिका उल्लंघन करनेवाले कार्यको करनेकी इच्छा होना नीचका लक्षण है। वह कदाग्रह, अज्ञान, लोभ व स्वार्थवृत्तिसे जाग्रत रहता है अत. यह नि ध कदाग्रह त्याज्य है। कहा है कि-- "दर्पः श्रमयति नीचान्निष्फलनयविगुणदुष्करारम्भैः। स्रोतो विलोमतरणैर्व्यसनिमिरायास्यते मत्स्यैः' ॥४॥