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गृहस्थ सामान्य धर्म : ७१. -जैसे पानीके बहावके सन्मुख-चलनेके व्यसनवाले मस्योंका प्रयत्न विफल जाता है वैसे ही नीच पुरुषोंका कदाग्रह फलरहित व अन्याययुक्त है। कदाग्रहसें (अहंकारद्वारा' वे बहुत कठिन कामों का प्रारंभ करनेका निरर्थक प्रयास करते हैं।
तथा-गुणपक्षपातितेति ३२ ॥१७॥ मूलार्थ-गुणोंके प्रति पक्षपात रखें ।।५७॥
विवेचन-गुणेषु- दाक्षिण्य, सौजन्य, उदारता, स्थिरता, प्रियवचनयुक्त भाषण आदि गुण स्व तथा परका' उपकार करनेके कारणरूप आत्माका धर्म, पक्षपातिता-बहुमानपूर्वक प्रशंसा,, सहायता आदि अनुकूल प्रवृत्ति करना चाहिये। ___गुणानुराग सबस उत्तम गुण है और इसीसे अन्य सन्न गुण आते है । इन. गुणोके प्रति प्रशंसा व बहुमान. रखनेसे, गुणानुरागसेव्यक्तिको प्रत्येक गुण प्राप्त होता है। तीर्थकर तककी कोई भी ऋद्धि. दुर्लभ नहीं । यदि दोषोकी ओर दृष्टि रखें तो दोष अपनेः अंदर आवेंगे । आत्मनिरीक्षण जरूरी है। गुणी पुरुषों पर, राग रख कर गुण प्राप्त करनेका सतत प्रयत्न करना चाहिये । ___गुणानुरागसे प्राप्त होनेवाले पुण्यानुवधी पुण्यके प्रभावसे इस लोकमे तथा परलोकमे शरद ऋतुके चंद्रकी किरपो समान शुक्ल गुणसमूहको अवश्य पाता है। क्योकि गुणानुराग चिंतामणि रत्नसे भी अधिक फल देनेवाला हैं। चिंतामणि रत्न-तो केवला इस लोकके इच्छित पदार्थोको देनेवाला है पर गुणानुरागसें तोमोक्षसुख मिलता है।