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७२ : धर्मविन्दु
तथा - ऊहापोहादियोग इतीति ३३ ॥ ५८ ॥ मूलार्थ - तर्क, वितर्क आदि बुद्धिके गुणोंका योग करे ||१८||
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विवेचन - बुद्धिके आठ लक्षण है। उनका योग व समागम करना चाहिये । शुश्रूषा, श्रवण, ग्रहण, धारण, विज्ञान, ऊह, अपोह तथा तत्त्वाभिनिवेश- ये आठ लक्षण है। बुद्धिके इन गुणोंके लक्षण इस प्रकार है- शुश्रूषा-सुनने की इच्छा, श्रवण-सुनना, ग्रहण- सुने हुए को समझ कर अंगीकार करना, धारणा- उसे याद रखना, विज्ञान - मोह, संदेह तथा विपरीतता रहित निश्चित ज्ञान, ऊहज्ञात अर्थका अवलंबन करके अन्य पदार्थों में उस पदार्थकी व्याप्ति सहित वितर्क करना, जैसे घरमें धुंआ देख कर वहां अग्नि है ऐसा विचार करनेको वितर्क कहते हैं । अपोह - वचन व युक्तिसे विरुद्ध कार्य जैसे हिंसा आदि कामको करने से पाप होता है, उसमेंसे निवृत्ति करना, ऐसे विरुद्ध कार्य ( हिंसादि ) का न करना अपोह है । पुनः दूसरे अर्थ में सामान्य ज्ञान ऊह है तथा विशेष ज्ञानको अपोह कहते है । विज्ञान, ऊह और अपोहको विशुद्ध रूपसे जान कर निश्चित रूपसे ज्ञान प्राप्त करके, तर्क-वितर्क करके तथा निचित रूपपे निवृत्ति या प्रवृत्ति करनेसे शुद्ध ज्ञानकी प्राप्ति होती है इससे 'यह ऐसा ही है' ऐसा निश्चित ज्ञान प्राप्त करनेको तत्त्वाभिनिवेश कहते है । तत्त्वकी प्राप्ति तत्त्वाभिनिवेश है ।
व्यक्तिको बुद्धिके इन आठ गुणोंकी प्राप्ति करना चाहिये तथा