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गृहस्थ सामान्य धर्म : ३७ जिसके आसपास कोई घर न हो । अतिगुप्तम्-सब तरफ घर आ जानेसे उसके द्वार आदि विभाग पहिचाने न जा सकें या एकदम सबसे अलग च बहुत अंदर हो । इससे दानादिका प्रसंग कम आवे तथा कुसमयमें सहायता मिलना भी मुश्किल है । अस्थानम्-अयोग्य स्थान पर घर बनाना भी अनुचित है। अनुचितप्रातिवेश्यं च -जिस स्थानके आसपास बुरे यादुर्गुणी लोगों का वास हो या जूआ आदि सप्त व्यसन सेवन करते हों ऐसे स्थानमें नहीं रहना चाहिए। ये स्थान,अयोग्य, कहे उसके कारण बताते है-- ____ अति प्रकट स्थानमें कोई आवरण न होनेसे या अकेले गृहके कारण चोर आदि निःशंक मनसे चोरी कर सकते हैं। अतिगुप्त स्थान पर उसकी शोभा नहीं हो सकती। तथा अग्नि आदिके उपद्रवके समय निकलना या प्रवेश करना कठिन होता है । __ "संसर्गजा दोष-गुणा भवन्ति"।
-दोष व गुण संसर्गसे पैदा होते हैं। अतः दुर्गुणी पडौसीके देखने, बातचीत तथा सहवास स्वत गुणी मनुष्यके तथा उसके बालबच्चोंके गुणोंकी हानि संभव है । अतः खराब पडौसीके पास न रहे। कैसे स्थान पर निवास करना चाहिए? उसकी विशेष विधि कहते हैं__ लक्षणोपेतगृहवास इति ॥२१॥
मूलार्थ-वास्तुशास्त्रमें कथित लक्षणोंवाले घरमें रहना चाहिए ॥ : -
विवेचन-वास्तुके आम स्वरूपको बतानेवाले लक्षण, जैसे