________________
४२ : धर्मविन्दु आवश्यक है। 'पट रिपुत्याग'के बाद 'उपद्रवस्थान त्याग'- छटा, 'योग्य आश्रय टेना'-सातवा, 'अच्छी संगति'-आठमा, 'योग्य स्थानमें रहना'-नवा, तथा 'ठीक वेशभूषा' दसवा गुण है। 'आयके अनुसार उचित व्यय' तथा 'देशके आचारका पालन क्रमशः ग्यारहवां तथा बारहवा गुण है। अब वारहवा गुण बताते हैं
तथा-प्रसिद्धदेशाचारपालनमिति ॥२६॥
मूलार्थ- भोजन-वस्त्रादिमें चलते हुए तथा शिष्ट जनों द्वारा अंगीकृत देशाचारका पालन करे।
विवेचन-प्रसिद्धस्य-शिष्ट पुरुषोंसे सम्मत तथा रूढिसे आया हुआ, देशाचारस्य-सब लोगोके व्यवहारमें आनेवाला, भोजनवस्त्रादि तथा चित्र क्रियादिका प्रचलित व्यवहार ।
गृहस्थ अपने देशमें प्रचलित आचारको पालन करे। उसका उल्लंघन होनेसे वहाके निवासियोसे विरोधकी संभावना रहती है तथा उससे अमगल या हानि संभव है। साथ ही पुराने रिवाज आदि वृद्ध पुरुषोने अनुभव व बुद्धिसे बनाए हैं। अतः उनको छोडनेसे पहले बहुत विचार करना चाहिए। फिर भी कालिदासके अनुसार'पुराणमित्येव न साधु सर्वम्'-पुराना सत्र उत्तम व नया सब बुराऐसा नहीं है। सत्पुरुषोको चाहिए कि वे प्रवाहमें न पड कर परीक्षा करके जो उत्तम रास्ता हो उसे अंगीकार करे। कहते हैं
"यद्यपि सकलां योगी, छिद्रां पश्यति मेदिनीम् । तथापि लौकिकाचारं, मनसाऽपि न लषयेत्" ॥२२॥