________________
गृहस्थ सामान्य धर्म : ६५ मुखी है। जो इहलोफका सुख भोगते हुए भी परलोक-सुखको नष्ट नहीं होने देता अर्थात् परलोकका विरोध न करके सुख भोगनेवाला ही वस्तुतः सुखी है । अतः बुद्धिमान लोग धर्मको बाधा न पहुंचे इस प्रकार अर्थ व कामका आराधन करते हैं।
जो व्यक्ति अर्थ व कामकी हानि करके धर्मकी ही उपासना करता है उसके लिए यतिधर्म ही श्रेयस्कर है, गृहवास नहीं। पर गृहस्थको तो (धर्मके साथ ) अर्थ व काम (घन व इच्छित पदार्थ प्राप्ति ) की उपासना करना ही कल्याणकारी है, इस न्यायसे धन पैदा करे तथा तादात्विक, मूलहर और कदर्यके भवगुणोंसे बचा रहे । क्योंकि इन तीनो पर शीघ्र आफत आती है।
तादात्विक- कुछ भी सोचे बिना उत्पन्न धनका अयोग्य व्यय करनेवाला । मूलहर- जो पिता, पितामह आदिका एकत्रित घन अन्यायसे खाता है तथा कदर्य- (कंजूस ) जो सेवक तथा स्वयं दोनोको कष्ट देकर धनका उपार्जन करे तथा संचय करे और दान व भोगमें व्यय न करे ।
तादात्विक और मूलहर दोनोको उत्तर अवस्थामें (वादमे) बहुत कष्ट उठाना पडता है व उनका कल्याण नहीं होता। उन दोनोका धन शीघ्र ही समाप्त हो जाता है । धनके नाश हो जाने पर धर्म व कामकी साधना नहीं हो सकती। कदर्यका किया हुआ अर्थ संग्रह राजा द्वारा हरा जाता है या उसके भागीदारोंकी संपत्ति हो जाती है या चोर लूट कर ले जाते हैं या जल जाता है। उस संपत्तिसे