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मान्य धर्म : ११
शक्तिको धूत जना व्यक्ति निठल्ला
कार्य नहीं है या जो व्यक्ति निठल्ला बैठा बैठा खाता है वह अपनी शक्तिको द्यूत (जुआ) आदिमें या अन्य ऐसे बुरे कार्यमें लगाएगा। ऐसे व्यसन या बुरे कर्मसे वह अपने सहायक पर भी दोष लगाता है। अपने बचे हुए समयमें अकर्म करता है उससे दुर्गति होती है तब दोषका निमित्त सहायक भी बनता है। दूसरे वह शक्तिका अपव्यय करनेसे निरुपयोगी भी हो जाता है। जब कोई आश्रित निरुपयोगी हो जाय तव उस पर अनुग्रह किया नहीं कहलाता पर उसका विनाश किया कहा जायगा । अत. पोप्य वर्गको योग्य कार्य में लगावे । - तथा-तत्प्रयोजनेषु बद्धलक्षतेति ॥ ३६ ।।
मूलार्थ-और उनके प्रयोजन पर लक्ष देना चाहिए ॥३६॥
विवेचन-प्रयोजनेषु-धर्म, अर्थ या काम जो भी उनको सौंपा हो उस पर, बद्धलक्षता-ध्यान देना, वरावर जाच करते रहना ।
उस पोष्यवर्गको जो भी कार्य सौंपा हो उस पर हमेशा ध्यान देकर उसकी योग्य जांच करना चाहिए।' ठीक कार्यकी प्रशंसा तथा मूलकी सुधारणा करना आवश्यक है। इससे वह अपने पासके कामको अच्छी तरह करेगा। यदि स्वामी उस पर लक्ष न देगा तो वे चिंता रहित हो जायेंगे और उन पर आपत्ति आने पर ध्यान न दिया तो वे दुखी होगे और इससे प्रसन्न मनसे अच्छा काम न कर सकेंगे। अतः हानि तो स्वामीको ही होगी। स्वामीको हमेशा अपने पोण्य वर्गको सौंपे हुए कार्य पर ध्यान व सावधानी रखनी चाहिए।
तथा-अपायपरिरक्षोद्योग इति ॥३७॥