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गृहस्थ सामान्य धर्म : ५९
भिन्नता, गरीरका भारीपन, अन्न पर अरुचि तथा बुरी डकार आनायह छ अजीर्ण लक्षण है।
अजीर्णसे जो रोग होते है वह कहते है --
'मूर्च्छा प्रलापो वमथुः प्रसेकः सदनं भ्रमः । उपद्रवा भवन्त्येते, मरणं वाऽप्यजीर्णतः " ॥३६॥
- अजीर्णके कारण मूर्छा, प्रलाप, कंपन, अधिक पसीना व थूक आना, शरीर नरम होना तथा चक्करका आना आदि उपद्रव होते है और अचेतनसे अंतमें मृत्यु भी होती है। अर्थात् अजीर्णके समय कुछ न खाकरलंघन करना चाहिये । पसीना ज्यादा आना, सदनं - अगग्लानि ) ।
( प्रसेक - थूक व
तथा - बलापाये प्रतिक्रियेति २२ ॥४४॥ मूलार्थ - बलकी कमी होने पर उसकी प्रतिक्रिया करे ॥ ४४ ॥ --
विवेचन-बल- शरीरका सामर्थ्य, अपाय-नाश या हास, प्रतिक्रिया - उसको रोकनेका उपाय, ।
शरीरका बल कम होता प्रतीत हो उसका उपाय शीघ्र करना चाहिये। प्रथम तो बलका हास किस कारण हुआ यह जानो और उसके अनुरूप उपाय करो अर्थात् ज्यादा परिश्रमका त्याग, स्निग्ध व अल्प आहारका पथ्य लेना आदि क्रियाओसे शरीर बलकी पूर्ति करना चाहिये। कारण कि, 'बलमू लि जीवनम्' - जीवनका मूल्य शारीरिक शक्ति है ।