Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षट्प्राभृते
[ १. १२'आशामार्गसमुद्भवमुपदेशात्सूत्रबीजसंक्षेपात् ।
विस्तारार्थाभ्यां भवमव-परमावादिगाढे च ॥ इत्यार्याकथितदशविधसम्यक्त्व-रत्नात्पतिताः । अस्या आर्याया अयमर्थः
सूक्ष्मं जिनोदितं वाक्यं हेतुभि व हन्यते ।। आज्ञासम्यक्त्वमित्याहुर्नान्यथावादिनो जिनाः॥ एवं जिन-सर्वज्ञ-वीतरागवचनमेव प्रमाणं क्रियते तदाज्ञासम्यक्त्वं कथ्यते (१)। निर्ग्रन्थलक्षणो मोक्षमार्गों न वस्त्रादिवेष्टितः पुमान् कदाचिदपि मोक्षं . प्राप्स्यति, एवंविधो मनोभिप्रायो निन्थलक्षणो मोक्षमार्गे रुचिर्गिसम्यक्त्वं
अनुभवन करने की अपेक्षा इसी क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन को वेदक सम्यग्दर्शन भी कहते हैं। यह सम्यग्दर्शन सादि मिथ्यादृष्टि के हो होता . है, अनादि मिथ्यादृष्टि के नहीं।
मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्व प्रकृति तथा अनन्तानुबन्धी क्रोध-मान-माया-लोभ इन सात प्रकृतियों के क्षय से जो तत्त्वश्रद्धान होता है उसे क्षायिक सम्यग्दर्शन कहते हैं । यह केवली या श्रुतकेवली के सन्निधान में होता है अथवा स्वयं को श्रुतकेवलो अवस्था होने पर होता है। इसका माहात्म्य सर्वोपरि है, यह होकर कभी नहीं छूटता। इसको . उत्पत्ति कर्मभूमि के मनुष्य के हो होती है। इस सम्यक्त्व का धारक जीव चार भव से अधिक भव धारण नहीं करता है।
बाह्य निमित्त की प्रधानता से सम्यग्दर्शन के दस भेद होते हैं
आज्ञामार्ग इत्यादि-१. आज्ञासमुद्भव, २. मार्गसमुद्भव, ३. उपदेशसमुद्भव, ४. सूत्रसमुद्भव, ५. बीजसमुद्भव, ६. संक्षेपसमुद्भव, ७. विस्तारसमुद्भव, ८. अर्थसमुद्भव, ९. अवगाढ और १० परमावगाढ | इनका स्वरूप निम्न प्रकार हैं
सूक्ष्म-जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा कहा हुआ सूक्ष्म वाक्य हेतुओं द्वारा खण्डित नहीं होता, ऐसा श्रद्धान करना आज्ञा-सम्यक्त्व है; क्योंकि जिनेन्द्र भगवान् अन्यथा कथन नहीं करते ।।
मोक्षमार्ग निर्ग्रन्थलक्षण है, वस्त्रादि से वेष्टित पुरुष कभी मोक्ष को
१. आत्मानुशासने गुणभद्राचार्यस्य । २. यही श्लोक अन्यत्र इस प्रकार उपलब्ध होता है
सूक्ष्मं जिनोदितं तत्त्वं हेतुभि व हन्यते । आशामात्रेण तद् ग्राह्य नान्यथावादिनो जिनाः ॥
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