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१४४ षट्प्राभृते
[४.६भवति । ( आसत्ता जस्स इंदिया विसया) आसक्ताः सम्बन्धमायाता यस्य मुने ऐन्द्रिया विषयाः, इन्द्रियेषु स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्रलक्षणेषु ह्रषीकेषु भवा ऐन्द्रिया. ते च ते विषयाः स्पर्शरसगन्धरूपशब्दलक्षणा यथासंभवं शक्तिरूपा व्यक्तिरूपाश्च भवन्ति । ( आयदणं जिणमग्गे ) आयतनं जिनमार्गे । ( णिद्दिष्टुं संजयं रूवं ) निर्दिष्टमागमे प्रदिपादितं सांयतं रूपं संयमिनः सचेतनं शरीरम् ॥५॥
मय राय दोस मोहो कोहो लोहो य जस्स आयत्ता। पंच महव्यधारी आयदणं महरिसी भणियं ॥६॥ . मदो रागो द्वेषो मोहः क्रोधो लोभश्च यस्यायत्ताः। . .
पञ्चमहाव्रतधरा आयतनं महर्षयो भणिताः ॥६॥ (मय राय दोस मोहो ) मदोऽष्टविधः । उक्तं समन्तभद्रेण महाकविना
ज्ञानं पूजां कुलं जाति बलमृद्धि तपो वपुः । । अष्टावाश्रित्य मानित्वं स्मयमाहुर्गतस्मयाः ॥१॥
विशेषार्थ-हृदय के मध्य में आठ पांखुरी के कमल के आकार वस्तुस्वरूपके विचार में सहायक जो मानस द्रव्य है वह मन कहलाता है। हृदय आदि आठ स्थानोंके आश्रित जो वचन हैं अथवा वचन-शक्ति से युक्त जो पुद्गल है वे वचन द्रव्य कहलाते हैं आठ अङ्ग और अनेक उपाङ्गों से युक्त मुनिका जो शरीर है वह काय द्रव्य है। स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण ये पांच इन्द्रियाँ हैं इनके स्पर्श, रस, गन्ध, रूप और शब्द ये पांच विषय हैं। ये विषय यथासंभव शक्ति-रूप तथा व्यक्तिरूप होते हैं। इस प्रकार मन वचन काय रूप द्रव्य तथा स्पर्श आदि इन्द्रियसम्बन्धी जिनके अपने आपके सम्बन्ध को प्राप्त हैं अर्थात् पर-पदार्थ से हट कर आत्मा से सम्बन्ध रखते हैं अथवा 'आयत्ता' पाठ को अपेक्षा ये सब जिनके स्वाधीन हैं, ऐसे संयत अर्थात् संयमो मुनिका सचेतन शरीर जिनागम में आयतन कहा गया है ।।५।।
गाथार्थ-मद रागद्वेष मोह क्रोध और लोभ जिसके अधीन हैं तथा जो पञ्च महाव्रतोंको धारण करने वाले हैं, ऐसे महर्षि आयतन कहे गये हैं ॥६॥
विशेषार्थ-मद आठ प्रकारका होता है जैसा कि श्री समन्तभद्र महाकविने कहा है
झान-ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, बल, ऋषि, तप और शरीर इन आठका आश्रय कर अहंकार करने को निर्मद ऋषि मद कहते हैं। राग
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