Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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-५. ४५ ]
भावप्राभृतम्
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दृष्ट्वा तत्र गमने विरक्तेन बभूवे । तद्रावसरे मन्दोदरी घात्री राजानमुवाच । देव ! नवं पलितमिदं तवापूर्वद्रव्यलाभं वदति तत्रैव विश्वभूः मंत्री कथयति । हे राजन् ! सुलसा परनृपान् मुक्त्वा त्वामेव वरयिष्यति तथाहं कुशलतया करिष्यामि । तत्श्रुत्वा हृष्ट्वा राजा तत्र चतुरङ्गसैन्येन चचाल । तत्र केषुचिद्दिवसेषु गतेषु मन्दोदरी सुलसान्तिकं गत्वा हे पुत्री ! कुलरूपसौन्दर्यविक्रमनयविनयविभवबन्धुसम्पदादयो ये गुणावरे विलोक्यन्ते ते सर्वेऽपि साकेतपतो सगरे सन्तीत्युवाच । तत् श्रुत्वा सा तत्र रक्ता बभूव । अतिथिस्तज्ज्ञात्वा युक्तिवचनैस्तं दूषयित्वा हे पुत्रि ! सुरम्यदेशे पोदनापुरे बाहुबलिकुले सर्वराजसु ज्येष्ठो मम भ्राता तृणपिंगलः राज्ञी सर्वयशास्तत्पुत्रो मधुपिंगलः सर्वैर्वरगुणैराढ्यो - ' नवे वयसि वर्तते स त्वया वरमालया मदाक्षेपेण माननीयः । साकेतपतिना सपत्नीदुःखदायिना किं
जाने में विरक्त हुआ । उसी समय मन्दोदरी नामक धायने राजासे कहा— देव ! यह नवीन सफेद बाल आपको अपूर्व द्रव्यका लाभ बतला रहा है। वहीं विश्वभू नामका मन्त्री था, वह भी कहने लगा कि हे राजन् ! सुलसा सब राजाओं को छोड़कर तुम्हें ही वरेगी ऐसा मैं चतुराई से उद्यम करूंगा। यह सुनकर हर्षित हो राजा चतुरङ्ग सेनाके साथ चल पड़ा। वहाँ कितने ही दिन व्यतोत हो जानेपर एक दिन मन्दोदरी. सुलसा के पास जाकर बोली कि हे पुत्रि ! कुल, रूप, सौन्दर्य, राजनीति, विनय, विभव, भाई बन्धु और सम्पत्ति आदि जो गुण वरमें देखे जाते हैं वे सभी गुण अयोध्या के स्वामी सगरमें विद्यमान हैं। यह सुनकर सुलसा उसमें अनुरक्त हो गई ।
पराक्रम,
जब सुलसा की माता अतिथिको इस बातका पता चल गया तब उसने युक्ति- पूर्ण वचनोंसे राजा सगरको दूषित कर अर्थात् उसमें अनेक दोष दिखाकर कहा कि हे पुत्र ! सुरम्यदेश के पोदनापुर नगर में बाहुबलीके कुलमें सब राजाओं में श्रेष्ठ तृणपिङ्गल नामका मेरा भाई है । उसकी स्त्रीका नाम सर्वयशा है । उन दोनोंका मधुपिङ्गल नामका पुत्र है जो वरके समस्त गुणोंसे सहित है तथा नई अवस्थामें विद्यमान है । तुझे मेरे कहनेसे वरमाला के द्वारा उसे ही सन्मानित करना चाहिये । सौतके दुःखको देनेवाले अयोध्याके राजा सगरसे तू क्या करेगी ? माताने यह सब कहा परन्तु सुलसाने उसके अनुरोध को स्वीकृत नहीं किया । तदनन्तर अतिथिने किसी उपायसे सुलसा के पास मन्दोदरी धायका प्रवेश
१. युक्त इति स० पुस्तके |
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