Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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५.५१] भावप्रामृतम्
३५७ जाललग्न मुसबालकमिव, अपारकर्दमेमग्नः भद्रजातिगताधिपतिमिव, लोहपज निरुद्धं सिंहमिव प्रत्यासन्नसंसारक्षयं सम्प्राप्तनिर्वेदं समीक्ष्य विद्युच्चोरः सुधीराष्टाल्यानं वदिष्यति हे कुमार ! त्वया श्रूयतां-कश्चित्क्रमेलक; स्वेच्छया चरन्नेकदा गिरेरुन्नतप्रदेशात् तृण खादन्नेतन्मधुरसोन्मित्रं सकृदास्वाद्योत्सुकस्तादृशमेवाहमाहरिष्यामीति मधुपानाभिवाञ्छया तृणान्तरचरणगतिपराङ्मुखस्तस्थौ भ्रमे च तथा त्वमप्येतानुपस्थितान् भोगाननिच्छन् स्वर्गभोगार्थी बुद्धिरहितः क्रमेलकावस्थां प्राप्स्यसि (१) इति चौरप्रतिपादितं श्रुत्वा कुमारः प्रत्युत्तरं दास्यति-कश्चित्पुमान् महादाहकरेण रविणा परिपीडितो नदीसरोवरतडागादिपानीयं पुनः पुनः पीत्वा तथापि न विनष्टतृष्णस्तुणाग्रस्थितजलकणं पिबन् कि तृप्ति याति तथायं जीवोऽपि चिरकालं दिव्यसुखं भुक्त्वाप्यतृप्तोऽनेन मनुष्यभवजातेन स्वल्पेन राजकर्णास्थिरेणास्वादुना तृप्ति यायात्-अपि तु न यायात (२) इति तद्वाचं श्रुत्वा स एकागारिकः कथयिष्यति कथां-एकस्मिन् वने किरात
कन्याओं के साध्यभाव से सहित अर्थात् पूर्वोक्त कन्याएँ जिसे वश करने के लिये घेरकर बैठी होंगी तथा जिसको समीचीन बुद्धि विस्तृत हो रही होगी ऐसे जम्बू कुमार को वह विद्युच्चोर ऐसा देखेगा जैसे पिंजड़े में पड़ा पक्षी हो, अथवा जालमें फंसा मृगका बालक हो, अथवा अपार कोचड में फंसा भद्रजातिका गजराज हो अथवा लोहेके पिंजड़ों से रुका सिंह हो । पश्चात् जिसके संसारका क्षय अत्यन्त निकट है तथा जिसे पूर्ण रूपसे वैराग्य प्राप्त हो चुका है ऐसे जम्बू कुमार को देखकर वह बुद्धिमान् विद्युच्चोर आठ कथाएँ कहेगा- (१) हे कुमार ! सुनो, एक ऊंट अपनी इच्छासे चरता हुआ एक बार किसी पर्वत के पास पहुंचा। वहां पर्वत के ऊंचे प्रदेश से मधु की कुछ बूंदे टपक कर घास पर पड़ गई थीं, मधु रससे मिश्रित उस घास को एकबार खा कर वह ऊंट इतना उत्सुक हो उठा कि मैं तो सदा ऐसी ही घास खाऊंगा। इस तरह मधुपान की इच्छासे दूसरी घास खाने से विमुख हो निराहार बैठा रहा तथा मर गया। इसी प्रकार तुम भी इन उपस्थित भोगोंको न चाहते हुए स्वर्गके भोगोंकी इच्छा कर रहे हो सो तुम बुद्धि-रहित हो, ऊंटकी अवस्था को प्राप्त होओगे। ___इस प्रकार चोर के द्वारा कही कथा को सुनकर जम्बू कुमार उत्तर
(२) एक पुरुष ने महा संताप उत्पन्न करने वाले सूर्यसे पीमित होकर
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