Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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-५. १३५]
भावप्रामृतम् 'आयुष्मान् सुभगः श्रीमान् सुरूपः कीर्तिमान्नरः।।
अहिंसावतमाहात्म्यादेकस्मादेव . जायते ॥२॥ उक्तं च
द्वित्रिचतुरिन्द्रियाः प्राणा भूतास्ते तरवः स्मृताः।
जीवाः पंचेन्द्रिया ज्ञेयाः शेषाः सत्वाः प्रकीर्तिताः॥१॥ असियसय किरियवाई अक्किरियाणं च होइ चुलसीदी। सत्तट्ठी अण्णाणी वेणइया होति बत्तीसा ॥१३५॥
अशीतिशतं क्रियावादिनामक्रियाणां च भवति चतुरशीतिः । सप्तषष्टिरज्ञानिनां वैनयिकानां भवन्ति द्वात्रिंशत् ॥१३५।।
( असियसय किरियवाई ) अशीत्यग्रं शतं क्रियावादिनां श्राद्धादिक्रियामन्यमानानां ब्राह्मणानां भवति । (अक्किरियाणं च होइ चुलसीदी) अक्रियावादिनां
तरह कि एक ओर अकेला चिन्तामणि रत्न रखा जावे और दूसरी ओर समस्त खेती रखी जावे परन्तु उत्कृष्ट फल चिन्तामणि का ही होता है।
आयुष्मान्–एक अहिंसावत के माहात्म्य से ही यह मनुष्य दीर्घायुष्क, भाग्यशाली, लक्ष्मीमान्, सुन्दर और कीर्तिमान होता है ।
और भी कहा हैद्वित्रि-दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय और चार-इन्द्रिय प्राण कहलाते हैं, वनस्पतिकायिक भूत कहलाते हैं, पञ्चेन्द्रिय जीव कहलाते हैं और शेष सत्व कहलाते हैं।
गाथा-क्रिया-वादियों के एकसौ अस्सी, अक्रिया-वादियों के चौरासी, अज्ञानियों के सड़सठ और वेनयिकों के बत्तीस भेद होते हैं॥१३५ ॥ · · विशेषार्थ-श्राद्ध आदि क्रियाओं को मानने वाले ब्राह्मण आदि - क्रिया-वादी हैं। इनके एकसौ अस्सी भेद हैं। इन्द्र चन्द्र नागेन्द्र गच्छ में
१. यशस्तिलके। २. इयं गाथा अन्यत्र त्वेवं प्रसिद्धा
असिदिसर्व किरियाणं अक्किरियाणं च होइ चुलसीदी।
सतन्यानी वेणइणाणं तु वत्तीस ॥ ... तो गाह्मणानां'।
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