Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

Previous | Next

Page 718
________________ -६.९०] मोक्षप्रामृतम् स्त्रिपुरदानवं भस्मयति, विष्णुः कसकेशवाणूरजरासन्धान् पिनष्ठि तेनैते द्वेषवन्तोऽपि ज्ञातव्याः । ब्रह्मा वशिष्ठमुखं पश्यति, रुद्रस्तु स्कन्द निरीक्षते, विष्णु प्रद्यम्ने स्निह्मति तैनेते मोहिनोऽपि शातव्याः । ब्रह्मणः सृष्टिचिन्ता समुत्पन्ना रुद्रस्य नरकवरदानात् विष्णोर्जरासन्धशिशुपालादिवधे महती चिन्ता समुत्पन्ना । तेनैते चिन्तावतो पि ज्ञातव्याः ब्रह्मा उर्वश्यां रमत्ते, रुद्रः पार्वती भुंक्ते, विष्णुः सत्यभामाद्याः क्रीडति तेनैतेषुरतिदोषोऽपि घटते । ब्रह्मा योगनिद्रां करोति, रुद्रः कैलासे शेते गिरिशनामकत्वात्, विष्णुर्जलशायीति कथ्यते तेनैते प्रमीलावन्तोऽपि विज्ञेयाः निद्रादोषा इत्यर्थः। रुद्रो नरकाय वरं दत्वा विषीदति इत्यादि विषाददोषोऽपि संगच्छते। मैथुनादिषु स्वेदसद्भावोऽपि लोककल्पितदेवानामभ्यूह्यः । खेवस्तु संग्रा. मादौ । विस्मयस्तु रूपादिदर्शने । इत्यादि लोकदेवतानामष्टादशापि दोषाश्चिन्तनीयाः । सर्वज्ञवीतरागे तु कश्चिदपि दोषो न वर्तते । उक्तं च सेवन करते है। सूर्य एणादेवीका और चन्द्रमा रोहिणी देवीका उपभोग करता है इसलिये इन सबको रागी भी जानना चाहिये। ब्रह्मा गजासुर के साथ द्वेष करते हैं, रुद्र त्रिपुर दानवको भस्म करते हैं, विष्णु कस, केश, चाणर और जरासन्धको पीस डालते हैं इसलिये इन सबको द्वेष से रहित भी जानना चाहिये । ब्रह्मा वसिष्ठ का मुख देखते हैं, रुद्र स्कन्द-कार्तिकेय को देखते हैं और विष्णु प्रद्युम्न पर स्नेह रखते हैं इसलिये इन्हें मोही भी जानना चाहिये । ब्रह्मा को सृष्टिको चिन्ता उत्पन्न हुई, रुद्रको नरकासुर के वरदान से चिन्ता उत्पन्न हुई और विष्णु को जरासन्ध तथा शिशुपाल आदि की बड़ी भारी चिन्ता उत्पन्न हुई इसलिये इन्हें चिन्तावान जानना चाहिये । ब्रह्मा उर्वशी में रमण करते हैं, रुद्र पार्वती का भोग करते हैं और विष्णु सत्यभामा आदिके साथ क्रोड़ा करते हैं इसलिये इनमें रतिदोष ' भी घटित होता है ब्रह्मा योग निद्रा लेते हैं, रुद्र कैलास पर्वत पर सोते हैं क्योंकि गिरिश उनका नाम ही है और विष्णु जलमें शयन करते हैं इसलिये इन्हें प्रमीला अथवा निद्रा दोष से युक्त भी जानना चाहिये। रुद्र नरकासुर वरदान देकर विषाद करते हैं, इसलिये विषाद दोष भी संगत होता है । मैथुनादिक समय स्वेदनामका दोष भी इन लोक कल्पित देवोंमें समझना चाहिये । संग्राम आदि के समय खेद और रूपादि के दिखाने में विस्मय नामका दोष संगत होता है । इस तरह लोक कल्पित देवताओं में अठारहों दोषों का सद्भाव विचार लेना चाहिये परन्तु सर्वज्ञ वीतराग देवमें कोई भी दोष नहीं है। पेसा किया है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766