Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 719
________________ षट्प्राभृते रागादिदोषसद्भावो ज्ञेयोऽमीषां तदागमात् । असतः परदोषस्य गृहीतौ पातकं महत् ॥ १ ॥ ( निग्गथे पावणे ) निर्ग्रन्थे प्रावचने प्रवचननियुक्ते गुरी । ( सद्दहणं होई सम्मत्तं ) एतेषु धर्मदेवगुरुषु पदार्थेषु श्रद्धानं रुचिः अन्येषु स्ववांतान्नास्वादनवदरूचिः सम्यक्त्वं भवतीति क्रियाकारकसम्बन्धः । ६६६ जहजारूवरूवं सुसंजयं सव्वसंगपरिचत्तं । लिंगं ण परोवेक्खं जो मण्णइ तस्स सम्मत्तं ॥९१॥ यथाजातरूपरूपं सुसंयतं सर्वसंगपरित्यक्तम् । लिङ्ग न परापेक्षं यः मन्यते तस्य सम्यक्त्वम् ॥९१॥ ( जहजायख्वरूवं ) यथाजातरूपं मातुर्गर्भनिर्गतवालकरूपं तद्वद्रूपमाकारो यस्य लिंगस्य तद्यथाजातरूप रूपं । ( सुसंजय सव्वसंगपरिचत्त ) पुनः कथंभूतं लिंगं, सुसंयतं सुष्ठु अतिशयवत्संयमसहितं सर्वसंगपरित्यक्तं सर्वपरिग्रहरहितं शिरःकणंकण्ठकरकटीक्रमप्रभृत्यङ्गाभरणवस्त्ररहितं सर्वथा नग्नं । ( लिंगं ण वरावेक्ख ) [ ६.९१ रागादि - इन सब लौकिक देवों में रागादि दोषों का सद्भाव उन्हों के शास्त्रों से जानने योग्य है क्योंकि दूसरे के अविद्यमान दोष के ग्रहण करने में महान् पाप है ||१|| इसी तरह प्रवचन कर्ता निग्रन्थ गुरुका श्रद्धान करना भी सम्यग्दर्शन है । इस प्रकार धर्म देव गुरु तथा जीवादि पदार्थों में श्रद्धान या रुचि करना और अन्य धर्म तथा देवताओं में अपने द्वारा वान्त अन्न के खाने के समान अरुचि रखना सम्यक्त्व होता है ॥९०॥ गाथार्थ - दिगम्बर मुनिका लिङ्ग (वेष) यथा ज्ञान - तत्काल उत्पन्न हुए बालक के समान होता है, उत्तम संयम से सहित होता है सब परिग्रह से रहित होता है और परकी अपेक्षा से रहित होता है ऐसा जो मानता है उसके सम्यक्त्व होता है । । ९१ ।। विशेषार्थ -- जिस प्रकार माता के गर्भ से निकले हुए बालक का रूप निर्विकार होता है उसी प्रकार दिगम्बर मुनिका वेष निर्विकार होता है । दिगम्बर मुनिका वेष सुसंयत अर्थात् अत्यधिक संयम से युक्त होता है । सर्व परिग्रहों से रहित होता है अर्थात् शिर कान कण्ठ हाथ कमर तथा पैर आदि अङ्गों के आभूषणों और वस्त्र से रहित सर्वथा नग्न होता है। तथा परकी अपेक्षा से रहित शरीर मात्र परिग्रह का धारी होता है । निर्ग्रन्थ साधु का वेष ऐसा होता है ऐसी जिसकी मान्यता है उसके सम्यक्त्व होता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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