Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 763
________________ [८.४०-. ७१० षट्प्राभृते ही शील है। ये दोनों ही ज्ञान हैं इनसे अतिरिक्त ज्ञान कैसा कहा गया है। भावार्थ-सम्यक्त्व और शील से रहित जो ज्ञान है वही ज्ञान ज्ञान है इनसे रहित ज्ञान कैसा ? अन्य मतों में ज्ञानको सिद्धिका कारण कहा गया है परन्तु जिस ज्ञान के साथ सम्यक्त्व तथा शील नहीं है वह अज्ञान है, उस अज्ञान रूप ज्ञानसे मुक्ति नहीं हो सकती ॥ ४० ॥ .. . . इस प्रकार श्री कुन्दकुन्दाचार्य विरचित शीलप्राभृत समाप्त हुआ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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