Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
[६. १००
६७४
षट्प्राभृते किं तत् ? बहुविधं नानाप्रकारं क्षमणमुपवासः । ( किं काहिदि आदावं ) किं करिष्यति, न किमपि करिष्यति, कोऽसौ ? आतापः धर्मकायोत्सर्ग पूर्वोक्तः समाचारः । कथंभूतः, ( आदसहावस्स विवरीदो ) आत्मस्वभावाद्विपरीतः बाह्यवस्तुसम्मोहित्तमनः। जदि पढदि वहुसुदाणि य जदि काहिदि बहुविहे य चरिते। तं बालसुदं चरणं हवेइ अप्पस्स विवरीदं ॥१००॥ यदि पठति श्रुतानि च यदि करिष्यति बहुविधानि चारित्राणि । तद्वालश्रुतं चरणं भवति आत्मनः विपरीतम् ॥१०॥
( जदि पढदि वहुसुदाणि य ) यदि चेत्, पठति व्यक्तमुच्चारयति, बहुश्रुतानि अनेकतर्कव्याकरणच्छन्दोऽलङ्कारसिद्धान्तसाहित्यादीनि शास्त्राणि । चकार उक्तसमुच्चयार्थ एकादशाङ्गानि दशपूर्वाणि च । (जदि काहिदि बहुविहे य चरित्ते ) यदि चेत्, काहिदि-करिष्यति अनुष्ठास्यति, बहुविधानि चारित्राणि त्रयोदशप्रकाराणि सामायिकादीनि पंचविधानि वा । ( त बालसुदं चरणं ) तत्सर्व बालश्रुतं मूर्खशास्त्रं, बालचरणं मूर्खचारित्रं । ( हवेइ अप्पस्स विवरीदं ) भवति बालश्रुतं बालचारित्रं भवति, कथभूतं सत् ? आत्मनो निजशुद्धबुद्धकस्वभावजीवतत्वाद्विपरीतं पराङ्मुखमात्मभावनारहितमिति भावार्थः ।
आदि तप भी उस साधु का क्या कर देंगे जो आत्म स्वभाव से विमुख है और घाम में कायोत्सर्ग से खड़े होकर आतप योग धारण करना भी उसका क्या कर सकता है जो आत्मस्वभाव से विपरीत है। अर्थात् जिसका चित्त बाह्य वस्तुओं से संमोहित है ॥ ९९ ।।
गाथार्थ-यदि ऐसा मुनि अनेक शास्त्रोंको पढ़ता है तथा नाना प्रकार के चारित्रों का पालन करता है तो उसकी वह सब प्रवृत्ति आत्म स्वरूप से विपरीत होनेके कारण बालश्रुत और बालचारित्र कहलाती
विशेषार्थ--यदि कोई मुनि स्पष्ट उच्चारण करता है अथवा तर्क, व्याकरण, छन्द, अलंकार, सिद्धान्त और साहित्य तथा चकार से ग्यारह अङ्ग और दशपूर्वो को पढ़ता है तथा तेरह अथवा सामायिक आदि पांच प्रकार के चारित्र को करता है तो उसका यह सब कार्य बालशास्त्र और बाल-चारित्र होता है क्योंकि वह मुनि आत्मस्वभाव से पराङ्मुख है-- आत्म भावना से रहित ॥ १००॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org